Thursday, 7 August 2025

धराली आपदा : विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा


धराली उत्तरकाशी ज़िले का एक बेहद खूबसूरत क़स्बा है जो गंगोत्री की ओर बढ़ते हुए चारधामों में से एक हर्षिल घाटी का अहम हिस्सा भी  है।यहाँ से गंगोत्री तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है। हिमालयी क्षेत्रों में बसे छोटे-छोटे धराली जैसे गाँव कभी अपनी नैसर्गिक प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाने जाते थे लेकिन हाल के वर्षों में सरकारों की अनियंत्रित विकास की अंधी दौड़ ने इन सरीखे कई क्षेत्रों को आपदा के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। देवभूमि उत्तराखंड के कई गाँवों में आज प्रकृति के साथ गंभीर  छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप  यहाँ पर आपदाएँ बार-बार दस्तक दे रही हैं। प्राकृतिक आपदा का सीधा सम्बन्ध प्रकृति की छेड़छाड़ से जुड़ा है और प्रकृति के साथ खिलवाड़ जिस पैमाने पर होता रहेगा उसका ताण्डव हिमालय पर उसी स्तर पर दिखेगा। धराली में खीर गंगा में यह पहली बार नहीं हुआ कि उसका जलस्तर बढ़ने के कारण आसपास के क्षेत्र को नुकसान हुआ है।  इससे पूर्व की आपदाओं में वहां पर जानमाल  का नुकसान नहीं हुआ लेकिन उसके बाद भी वहां पर ना ही स्थानीय लोग चेते और ना ही शासन प्रशासन की ओर से वहां पर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम किए गए।1948 में धराली से कुछ किलोमीटर नीचे कनोडिया गाड़ ने भी अपना विकराल  रूप दिखाया था। उस समय डबराणी में  गंगा का प्रभाव तक रुक गया था जिससे फिर भारी तबाही हुई। इसी तरह 1978 में धराली से नीचे उत्तरकाशी की तरफ़ आते हुए 35 किलोमीटर दूर डबराणी में एक बाँध टूट गया था जिससे भागीरथी में बाढ़ आ गई थी और कई गाँव बह गए। 1835 में भी खीर गंगा में सबसे भीषण बाढ़ आई थी। तब नदी ने सारे धराली क़स्बे को पाट दिया था। बाढ़ से यहाँ भारी मात्रा में मलबा जमा हो गया था। बीते कई बरस  में भी खीर गंगा में पानी का तेज़ बहाव आने, बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ हुई की अनेक घटनाएँ हुई हैं लेकिन इसमें कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई। 2017-18 में खीर गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण वहां पर होटल दुकानों और कई घरों में मलबा घुस गया था। उस समय कुछ  नुकसान नहीं हुआ हालाँकि  2023 में खीर गंगा के बढ़ते जलस्तर  के कारण वहां पर कई दिनों तक गंगोत्री हाईवे भी बंद रहा था साथ ही दुकानों और होटल को भी नुकसान हुआ था। 


एक दौर था जब हिमालय के ऊँचाई वाले इन इलाक़ों में काफी बर्फ़ गिरती थी। तब यहाँ के ग्लेशियर में पानी का जमाव  होता था लेकिन अब बर्फ़ कम गिरती है और बारिश भी कम  होती है और ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। इसकी वजह है जलवायु परिवर्तन और इसका असर पूरे पहाड़ी इलाके के हर जिले में महसूस किया जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के साइड इफेक्ट अब हिमालय से लगे इलाकों में भी महसूस किये जा सकते हैं। ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। अनियोजित विकास के कारण आज पर्वतीय इलाकों में संकट के बादल मंडरा रहे है। इन संवेदनशील इलाकों में प्राकृतिक घटनाओं की आशंका पहले भी जताई जा चुकी है पर इसे लेकर चौकन्ना न रहने की गलती जब तक होती रहेगी हादसे होते रहेंगे। प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए बेहतर प्रबंधन को बढ़ाने के साथ-साथ प्रकृति के इशारों को समझना भी बहुत जरूरी है। वह चेतावनियां सच साबित हो रही हैं जो कई दशकों से पर्यावरण वैज्ञानिक देते आ रहे थे कि धरती का लगातार बढ़ रहा तापमान शांत पड़े ग्लेशियरों को परेशान कर रहा है। ग्लेशियरों का पिघलना या टूटना मानवता व पूरे वातावरण के लिए खतरनाक है। दुर्भाग्य है कि प्राकृतिक संसाधनों की बड़ी लूट के कारण आज उत्तराखंड कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है। अगर अभी भी इस हादसे से हमने सबक नहीं लिया तो किसी दिन तबाही बड़े पैमाने पर होगी। 

धराली में हाल ही में आई आपदा ने स्थानीय समुदाय और पर्यावरण को गहरा नुकसान पहुँचाया है। गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे इस क्षेत्र में अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। भारी मशीनरी के उपयोग, जंगलों की कटाई और अनियोजित सड़क निर्माण ने भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को बढ़ावा दिया है  जिसके परिणामस्वरूप यह आपदा सामने आई। धराली और आसपास के क्षेत्रों में सड़क निर्माण, बाँध परियोजनाएँ और होम स्टे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होटल निर्माण जैसे कार्य बिना पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के किए गए जिसका परिणाम अब जमीन पर दिखाई देने लगे हैं । पहाड़ों की संवेदनशील भूगर्भीय संरचना को नजरअंदाज करते हुए यहाँ पर भारी मशीनरी का उपयोग किया गया जिससे भूस्खलन का खतरा हाल के कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के नाम पर पूरे उत्तराखंड में बड़े  पैमाने पर जंगलों को काटा  जा रहा है जिससे मिट्टी की स्थिरता कम हुई है और आपदा की घटनाएँ भी तेजी से बढ़ी हैं। धराली जैसे क्षेत्र आज जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक असुरक्षित हो गए हैं। धराली की  इस बार की आपदा में और आसपास के क्षेत्रों में कई लोगों ने अपनी जान गँवाई है और कई परिवार बेघर हो गए हैं । स्थानीय लोगों की आजीविका जो मुख्य रूप से कृषि और पर्यटन पर निर्भर थी इस बार की आपदा ने  बुरी तरह प्रभावित कर डाली है। धराली का बाजार जो पर्यटन की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा था, बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पहाड़ी इलाकों में नदियों और नालों के किनारे फ्लड प्लेन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी तरह के अतिक्रमण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ऐसे क्षेत्र भूस्खलन जैसी घटनाओं के लिए अत्यंत असुरक्षित होते हैं। धराली आपदा हमें यह सिखाती है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना कितना आवश्यक है। 

यह वही उत्तराखण्ड है जिसने 80 के दशक में ज्ञानसू का भूकम्प, भीषण अतिवृष्टि, बाढ़ का कहर देखा तो वहीं 90 के दशक में उत्तरकाशी और चमोली के भूकम्प के झटके भी महसूस किये है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के पथ में मालपा नामक जगह पर भूस्खलन से भारी तबाही का मंजर भी  इसने देखा है। 2003 मे उत्तरकाशी में वरूणावत के भारी भूस्खलन के अलावा 2012 में उत्तरकाशी में ही असीगंगा व भागीरथी के तट पर बादल फटने के कहर के अलावा सुमगढ़ बागेश्वर में बादल के कहर में कई परिवारों को जमींदोज होते देखा है, जहां जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ और जानमाल को व्यापक नुकसान हुआ। वहीं 2013  में केदारनाथ का भीषण हादसा, 2021 की रैणी (चमोली) हिमस्खलन त्रासदी और 2023 के जोशीमठ भू-धंसाव जैसी घटनाएं इस गहराते संकट की स्पष्ट चेतावनियाँ हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिक संतुलन गंभीर रूप से बाधित हो चुका है लेकिन हमारी याददाश्त कम रहती है। हम पुरानी घटनाओं को जल्द भूलना जानते हैं और उससे सबक भी नहीं लेना चाहते।

उत्तराखंड में अवैध माईनिंग लगातार जारी है। वृक्षों की चोरी-छिपे कटाई भी चल रही है। ऑल वेदर रोड के नाम पर करोड़ों वृक्ष काटे जा रहे हैं। पहाड़ों को खोद खोदकर टनल बिछाई जा रही है। तीर्थाटन के नाम पर अत्यधिक निर्माण, पर्वतीय ढलानों की अंधाधुंध कटाई, जलविद्युत परियोजनाओं हेतु सुरंगों व बांधों का जाल, सड़क विस्तार की प्रक्रिया में वनों की व्यापक कटाई तथा पर्यावरणीय नियमन की उपेक्षा ने पारिस्थितिकीय तंत्र को अत्यंत असंतुलित किया है।विशेषकर चारधाम यात्रा मार्ग पर व्यापक निर्माण गतिविधियों के चलते अनेक क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाओं में तीव्र वृद्धि हुई है। बीते कुछ बरस में यहाँ  अतिवृष्टि, बादल फटना,  भूस्खलन,वनाग्नि जैसी आपदाएँ न केवल जन-धन की व्यापक क्षति का कारण बनी हैं, बल्कि राज्य की सामाजिक संरचना, आर्थिक स्थायित्व और पारिस्थितिक तंत्र को भी गहरे स्तर पर प्रभावित कर रही हैं।गढ़वाल के इलाकों में रेल  की सुविधा पहुंचाने के नाम पर लगातार पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। वृक्षों की लगातार हो रही कटाई से हिमालय के पशु- पक्षी  भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अब प्रवासी पक्षियों और हिमालय के पशुओं की आमद पर भी इसका काफी हद तक  प्रभाव दिखाई देने लगा है। पहाड़ों में बढ़ रहे निर्माण कार्यों से वनों का क्षेत्रफल कम हो गया है। समय पर बरसात नहीं हो रही, कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है। बाढ़ आने का मुख्य कारण भी वृक्षों की लगातार हो रही कटाई है। कभी पहाड़ों में जंगल भी बाढ़ के आगे दीवार बन जाते थे। बांधों के निर्माण के समय वृक्षों की कटाई बड़े स्तर पर हुई है। कट रहे वृक्ष, बढ़ रहा प्रदूषण प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन रहा है। अभी भी वक्त है सरकारें संभल जाएँ। अन्धाधुन्ध विकास और कारपरेट लूट के चलते उत्तराखण्ड में बीते एक दशक से ज्यादा समय से प्रकृति से भारी छेड़छाड़ शुरू हुई है। धार्मिक पर्यटन के नाम पर यहां जहां मुनाफे का बड़ा कारोबार ढाबों, रिजार्ट के जरिए हुआ है वहीं वनों की अन्धाधुंध कटाई से भी पहाड़ की परिस्थितिकी संकट में है। पहाड़ में जल,जमीन,जंगल का सवाल आज भी जस का तस है। नदियों के किनारे कब्जों की आड़ में जहां बड़ा अतिक्रमण हुआ है वही इसी की आड़ में बड़े-बड़े रिजार्ट भी खुले है। इन निर्माण कार्यों पर किसी तरह की रोक लगाने की जहमत किसी में नही है क्योंकि राजनेताओं, माफियाओं और कारपरेट के काकटेल ने पहाड़ को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसमें राजनेताओं की भी सीधी मिलीभगत है क्योंकि  न केवल अपने चहेतों को उन्होंने जमीनें यहां दिलवाई है बल्कि बड़ी परियोजना लगाने के नाम पर विकास के चमचमाते सपने के बीच रोजगार का झांसा भी पहाड के ग्रामीणों को दिया गया है। यही नहीं पावर वाली कम्पनियों से प्रोजेक्ट लगाने के नाम पर मोटा माल अपनी जेबों में भरा है।

राज्य गठन के बाद  की सरकारों ने अपने करीबियों को न केवल नदियों में खनन के पट्टे दिये हैं बल्कि ठेकेदारों को भी पहाड़ों में निर्माण कार्य में मुख्य मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया है। पर्यटन के सैर सपाटे के बीच पहाड़ में ट्रैवल ऐजेन्टों की सुविधा के लिए जगह- जगह पहाड़ काटकर मानकों को ताक  में रखते हुए सड़कें काटी हैं। एक तरह पहाड़ में आज  जहां बेतरतीब ढंग से गाडि़यां दौड़ रही  वहीँ  ऐसे इलाकों में जहां जल प्रचुर मात्रा में है वहां बांध बनाने और  सुरंग निकालने का खेल  शुरू हुआ है। अलग राज्य का गठन पहाड़ के पिछड़ेपन के कारण हुआ था लेकिन आज हालत यह है चट्टाने दरकने से गांव के गांव खाली हो रहे है। अब गाँव में बुजुर्गो की पीड़ी ही दिख रही है।  हाइड्रो  परियोजनाओं के नाम पर पहाड़ की जमीनों को खुर्द -बुर्द किया जा रहा है। टिहरी इसका नायाब नमूना है जहां विकास की चमचमाहट दिखाई गई लेकिन टिहरी के डूबने की कथा स्थिति की भयावहता को उजागर करती है। प्राकृतिक सम्पदा की लूट में उत्तराखण्ड की कोई सरकार अछूती नहीं है। विकास के नाम पर सरकार की नीयत साफ नहीं है। हर किसी का उद्देश्य इस दौर में मुनाफा कमाना और अपनी झोली भरना हो चला है और कारपरेट के आसरे राज्य में निवेश सम्मेलनों के माध्यम सेफलक-फावड़े बिछाए जा रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश के भीतर 200 से अधिक  हाइड्रो प्रोजेक्ट्स चल  रहे हैं और सैकड़ों योजनाएं प्रस्तावित है जिनमें से गढ़वाल के मुख्य इलाकों में निर्माणधीन है जो भागीरथी  अलकनंदा और मंदाकनी में बनाई जानी हैं जहां पहाड़ों को चीरकर काटकर विस्फोट कर सुरंग बनाई जाएंगी  जो भविष्य के लिए कतई सुखद संकेत नहीं है।  

उत्तराखण्ड में पिछले दो दशक में सड़कों का निर्माण और विस्तार तेजी से बढ़ा है। इसके लिए भूवैज्ञानिक फॉल्ट लाइन, भूस्खलन के जोखिम को भी हद तक नजरअंदाज किया गया है। विस्फोटक के इस्तेमाल, वनों की कटाई, भूस्खलन के जोखिम पर कुछ खास ध्यान न देना और जल निकासी संरचना का अभाव सहित कई सुरक्षा नियमों की अनदेखी भी किसी बड़ी आपदा को न्यौता दे रही है। पर्यटन और ऊर्जा की दृष्टि से उत्तराखण्ड एक उपजाऊ प्रदेश है जिसके लिए तीव्र विस्तार जारी है। आपदा प्रबंधन के आधारभूत नियमों की अनदेखी भी यहां घटनाओं को सहज उपलब्धता  देता है। पर्यावरण और सामाजिक जीवन का ताना-बाना भी यहाँ पर उथल-पुथल में है। कुछ बरस पूर्व  रेणी  गांव में हुआ हादसा अभी तक जेहन में बना है जहाँ सुरंग में फंसे लोगों की जिन्दगी की उम्मीद भी खत्म हो गई।.इस घटना के मामले में पूर्व में ऐसा कोई संकेत नहीं था। यहां हिमखण्ड टूटने के चलते धौलीगंगा में सैलाब आ गया और तपोवन की बिजली परियोजना पर कहर बन कर टूटा और यह तबाही नदियों के सहारे आगे बढ़ गयी। 

2013 के केदारनाथ आपदा को अभी भी कोई भूला नहीं है। 16 जून 2013 को चैराबाड़ी ताल टूटने से मंदाकिनी में बाढ़ आ गयी। केदारनाथ घाटी में नुकसान और रामबाड़ा तहस-नहस हो गया। केदारनाथ आपदा इतनी बड़ी थी कि इसकी विपदा उत्तराखण्ड समेत देश के 22 राज्यों को झेलनी पड़ी थी। मानव अपने निजी लाभों के लिए हस्तक्षेप बढ़ाकर प्रकृति को तेजी से बदलने के लिए मजबूर कर रहा है और हादसे इसके भी नतीजे हैं।धराली आपदा एक चेतावनी है कि विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम विनाशकारी हो सकता है। यह समय है कि हम अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करें और सतत विकास के रास्ते पर चलें। हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य स्थापित करना न केवल आवश्यक है, बल्कि हमारी भावी पीढ़ियों के लिए एक जिम्मेदारी भी है। धराली की त्रासदी को एक सबक के रूप में लेते हुए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास प्रकृति के खिलाफ न हो, बल्कि उसके साथ मिलकर चलें ।

पर्यटन इस राज्य की सबसे बड़ी रीढ़ है जो राजस्व प्राप्ति का अहम साधन है। हमें पर्यटकों को बुनियादी सुविधाऐं देनी चाहिए। पर्यटकों को भी इस बात पर विचार करना होगा इस तरह के खूबसूरत स्थलों पर हर दिन भारी भीड़ नहीं पहुंचे। बड़ी आबादी का बोझ पहाड़ सहने की स्थिति में नहीं हैं।  चार धाम की यात्रा में भारी भीड़ और अव्यवस्थाएं हर साल देखने को मिलती है।  उत्तराखंड आने वाले  पर्यटकों  की संख्या भी पिछले 25 सालों में तेजी से बढ़ी है। राज्य पर्यटन विभाग के मुताबिक पिछले साल 2001 में 1 करोड़ पर्यटक राज्य में पहुंचे वहीँ अब यह संख्या 5 करोड़  से अधिक पहुँच चुकी है। जाहिर है कि ऐसे में किसी  नई कार्ययोजना की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। पिछले  कुछ समय  से विकास के नाम पर यहाँ  नवनिर्माण का जो खेला और वाहनों का रेला लगा है वह समझ से परे है। मिसाल एक तौर पर बदरीनाथ में मास्टर प्लान के नाम पर अलकनंदा के दोनों तरफ घाट तोड़ दिए गए हैं और आने वाले दिनों में अलकनंदा के जलस्तर को किसी दिन बढ़ाएंगे और बड़ी आपदा की तरफ हम बढ़ेंगे।जलवायु परिवर्तन, अनियोजित विकास, पारिस्थितिक असंतुलन और प्रशासनिक अक्षमता ने इस देवभूमि  राज्य को संकटग्रस्त क्षेत्र में  बदल दिया है  जिसकी कीमत विनाश के नाम पर एक दिन यहाँ के लोगों को ही चुकानी पड़ेगी।

हमें पहाड़ी यात्रा मार्ग पर आपदा रोकने के लिए और उसके मुकाबले के लिए एक बेहतर तंत्र अब  विकसित करना होगा। बेशक विकास जरूरी है लेकिन पर्यावरण के साथ विकास में भी एक संतुलन बनाकर लकीर खींचने की जरूरत है। बेहतर होगा पहाड़ी इलाकों में प्रकृति के अन्धाधन्ध दोहन पर रोक लगने के साथ ही यहां के अवैध कब्जों और निर्माण पर भी ब्रेक लगे।  बड़े सुरंग आधारित बांधों के बजाय छोटे बांधों पर जोर दिया जा सकता है। बिल्डरों और राजनेताओं का नेक्सस टूटना चाहिए। जो भी हो उत्तराखण्ड की धराली की आपदा ने इस बार यह बड़ा सबक दिया है कि नियोजित विकास के साथ पारिस्थितिकीय संतुलन बनाने की जरूरत है। अगर अब भी हम नहीं चेते तो  भविष्य में धराली  जैसे अनेक  हादसे उत्तराखंड में होते रहेंगे।



Wednesday, 6 August 2025

लाड़ली बहना के चेहरों पर मोहन भैया ने लौटाई मुस्कान


मध्यप्रदेश सरकार की लाड़ली बहना योजना ने महिलाओं के सशक्तिकरण और आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। इस योजना के तहत मध्यप्रदेश सरकार ने महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर उनके जीवन में नई उम्मीदें जगाई हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह योजना न केवल महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता का स्रोत बनी है, बल्कि उनके चेहरों पर मुस्कान और आत्मविश्वास भी लौटाने में सफल रही है।


लाड़ली बहना योजना मध्यप्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने की 10 से 15 तारीख को 1,250 रुपये की आर्थिक सहायता सीधे उनके बैंक खातों में हस्तांतरित की जाती है। 2025 तक इस योजना के तहत 1.27 करोड़ से अधिक महिलाओं को 19,212 करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित की जा चुकी है। यह योजना न केवल आर्थिक सहायता प्रदान करती है, बल्कि महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

लाड़ली बहना योजना की शुरुआत मध्यप्रदेश में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के उद्देश्य से की गई थी। हर महीने 1250 रुपये की राशि से न केवल उनकी छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा हो रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी मिल रहा है। डॉ. मोहन यादव ने इस योजना को सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का माध्यम भी बनाया है। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में यह योजना अब तक सवा करोड़ से अधिक महिलाओं तक पहुंच चुकी है और इसके तहत 28 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित की जा चुकी है। लाड़ली बहना योजना से मध्यप्रदेश की महिलाओं के जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। योजना से प्रतिमाह मिलने वाली मासिक सहायता राशि ने जहां एक तरफ महिलाओं को छोटे-मोटे खर्चों के लिए आत्मनिर्भर बनाया है वहीँ इससे वे अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हुई हैं। यहीं नहीं इस योजना ने महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाया है। वे अब अपने परिवार और समाज में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

प्रदेश सरकार के मुखिया डॉ. मोहन यादव ने लाड़ली बहना योजना को बंद करने की विपक्षी दलों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया है। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने स्पष्ट किया कि यह योजना महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए शुरू की गई थी और इसे हर हाल में जारी रखा जाएगा। विपक्ष के दावों को झूठा करार देते हुए सरकार ने कहा कि यह योजना न केवल निर्बाध रूप से जारी रहेगी, बल्कि भविष्य में इसका दायरा और बढ़ाया जाएगा। डॉ. मोहन यादव ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए भविष्य में इसकी राशि को बढ़ाने का वादा भी प्रदेश की जनता से किया है। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने हाल ही में घोषणा की कि भईया दूज के साथ लाड़ली बहना योजना के तहत महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपये प्रदान किए जाएंगे। उनके द्वारा पिछले दिनों कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में इस राशि को 3,000 रुपये तक बढ़ाने की बात भी कही है। यह निर्णय महिलाओं के लिए आर्थिक स्थिरता लाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। डॉ. मोहन यादव ने सुनिश्चित किया कि योजना की राशि समय पर और पारदर्शी तरीके से लाभार्थियों के खातों में पहुंचे।

डॉ. मोहन यादव की संवेदनशीलता, जमीनी जुड़ाव और योजना को और बेहतर बनाने की प्रतिबद्धता ने इसे और प्रभावी बनाया है। यह योजना निश्चित रूप से मध्य प्रदेश में महिलाओं के सशक्तिकरण का एक नया अध्याय लिख रही है और इसके लिए डॉ. मोहन यादव की दूरदर्शिता और नेतृत्व को श्रेय जाता है। इस योजना के पीछे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की दूरदर्शी सोच और संकल्प है जिन्होंने न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है  बल्कि उनके चेहरों पर मुस्कान भी लौटाई है। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने स्पष्ट किया कि यह योजना उनकी सरकार की प्रमुख प्राथमिकता में है और इसे भविष्य में और सशक्त किया जाएगा। डॉ.मोहन यादव की प्रतिबद्धता ने महिलाओं के बीच भरोसा कायम रखा है। इसके अलावा योजना की राशि को समय पर हस्तांतरित करने से लाडली बहनाओं के बीच भरोसा बरकरार है। हर महीने की 10 से 15 तारीख के बीच राशि हस्तांतरण का उत्सव पूरे प्रदेश में देखा जा सकता है।

डॉ. मोहन यादव की सरकार ने लाड़ली बहना योजना के अलावा भी महिलाओं के कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं। एक तरफ अब तक जहाँ 850 से अधिक एमएसएमई इकाइयों को 275 करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की गई जिससे एक लाख से अधिक महिलाएं लखपति बन चुकी हैं वहीँ 19 लाख से अधिक बालिकाओं को सेनिटेशन और हाइजीन योजना के तहत 57 करोड़ 18 लाख रुपये की राशि दी गई। आज सरकार द्वारा महिलाओं को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रशिक्षण और ऋण सुविधाएं आसानी से प्रदान की जा रही हैं। ये सभी प्रयास डॉ. मोहन यादव की उस सोच को दर्शाते हैं जिसमें महिलाएं न केवल परिवार की रीढ़ हैं, बल्कि राष्ट्र , समाज और अर्थव्यवस्था की प्रगति में भी बराबर की भागीदार हैं।

लाड़ली बहना से जुडी प्रदेश की महिलाओं के चेहरे इन दिनों ख़ुशी से खिले हुए हैं। इस बार उनके मोहन भैया 27 वीं किश्त के साथ रक्षाबंधन का शगुन भी देने वाले हैं।  7 अगस्त को लाड़ली बहनों के खातों में 250 रुपए की अतिरिक्त राशि  दी जायेगी, जो रक्षाबंधन पर भाई की तरफ से छोटा सा उपहार है। यह राशि प्रतिमाह मिलने वाली 1250 रुपए से अतिरिक्त होगी। मोहन भैया रक्षाबंधन पर नरसिंहगढ़ से 250 रू का शगुन देकर लाड़ली बहनों का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। डॉ. मोहन यादव ने लाड़ली बहना योजना को भविष्य में और अधिक प्रभावी बनाने का संकल्प लिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि रक्षा-सूत्र केवल धागा नहीं लाड़ली बहनों की रक्षा, सहयोग और स्वप्नों को साकार करने का संकल्प भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत” के मिशन को विजन बनाते हुए डॉ. मोहन यादव का लक्ष्य मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था को दोगुना करना और हर महिला को आत्मनिर्भर बनाना है। डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि प्रदेश की महिलाएं मेरी बहने हैं यह मेरा मान है, सम्मान है, बहनों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं आए इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार कृत संकल्पित है।मुख्यमंत्री डॉ. यादव का कहना है कि जैसे मोदी सरकार लोकसभा-विधानसभा में बहनों को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है, उसी तरह हमारी सरकार भी महिलाओं के रोजगार और उनकी आर्थिक तरक्की के लिए संकल्पित है।

डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में लाड़ली बहना योजना ने मध्यप्रदेश की महिलाओं के जीवन में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह योजना केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के आत्मसम्मान, स्वतंत्रता, और सपनों को पंख देने का माध्यम बनी है। डॉ.यादव की संवेदनशीलता, दृढ़संकल्प और समर्पण ने रक्षाबंधन पर प्रदेश की करोड़ों लाड़ली बहनों के चेहरों पर मुस्कान लौटाई है।

Friday, 1 August 2025

एमपी के स्वच्छता मॉडल ने पेश की नई मिसाल, इंदौर के साथ चमके कई शहर


मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में लगातार आठवीं बार देश के सबसे स्वच्छ शहर का खिताब अपने नाम किया है। इंदौर ने 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की सुपर स्वच्छ लीग सिटीज कैटेगरी में ओवरऑल पहला स्थान हासिल किया है। यह उपलब्धि न केवल इंदौरवासियों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह शहर की स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता, नागरिकों की सक्रिय भागीदारी और नगर निगम के बेहतरीन नवाचारों का परिणाम है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत आयोजित इस सर्वेक्षण में इंदौर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि स्वच्छता केवल एक आदत नहीं, बल्कि एक संस्कृति है।

 इंदौर पूर्व में सात बार देश के स्वच्छतम शहर का पुरस्कार प्राप्त कर चुका है। उज्जैन को 3 से 10 लाख जनसंख्या वाले शहरों की श्रेणी में स्वच्छ लीग पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो गर्व का विषय है। इसी प्रकार 20 हजार से कम आबादी वाले नगरों की श्रेणी में बुधनी नगर को भी सम्मानित किया गया। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में मध्यप्रदेश के अन्य शहरों ने भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इंदौर के साथ भोपाल, देवास, शाहगंज, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन एवं बुधनी को भी विभिन्न श्रेणियों में स्वच्छता पुरस्कार मिला है। बाबा महाकाल की उज्जैन को 3 से 10 लाख जनसंख्या वाले शहरों की श्रेणी में शीर्ष स्थान मिला है। 20 हजार से कम आबादी वाले शहरों में बुधनी सर्वश्रेष्ठ शहर बन कर उभरा है जबकि 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले स्वच्छ शहरों में भोपाल दूसरे, जबलपुर पांचवें और ग्वालियर 14वें स्थान पर रहा है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में स्वच्छता में प्रॉमिसिंग शहर का स्टेट अवार्ड ग्वालियर को मिला है। इसी तरह से 50  हजार से तीन लाख जनसंख्या वाले स्वच्छ शहरों में देवास प्रथम स्थान पर रहा। मध्यप्रदेश ने कुल आठ राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किए जिससे राज्य ने स्वच्छता के क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छ भारत मिशन की प्रेरणा और जनभागीदारी इस सफलता का आधार रहा। इंदौर की स्वच्छता की सफलता का श्रेय शहर के कचरा प्रबंधन, जन जागरूकता और नवाचारों को जाता है। इंदौर के स्वच्छता मॉडल ने शहर को कचरा-मुक्त  बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इंदौर में खुले में कचरा फेंकना पूर्णतः प्रतिबंधित है। शहर में कचरा डंपिंग को शून्य करने के लिए सभी कचरे की प्रोसेसिंग की जाती है। गीले कचरे से खाद बनाई जाती है, जबकि सूखे कचरे को रिसाइकिल कर अनेक  उत्पाद बनाए जाते हैं। इंदौर की सफलता का सबसे बड़ा आधार जनभागीदारी भी है। स्वच्छता के प्रति नागरिकों का जुनून और सामूहिक प्रयास इस मॉडल को अनूठा बनाते हैं। नगर निगम ने विभिन्न जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को स्वच्छता के प्रति प्रेरित किया है। इंदौर ने कचरा प्रबंधन के लिए हाई-टेक सिस्टम विकसित किया है। कचरा संग्रहण वाहनों की हर गतिविधि को जीपीएस के माध्यम से ट्रैक किया जाता है। एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियंत्रण कक्ष से हर सेकंड की गतिविधि की निगरानी की जाती है।इंदौर में एशिया का सबसे बड़ा बायो-मीथेन गैस प्लांट स्थापित  किया गया  है जो गीले कचरे से बायो-गैस और खाद उत्पादन करता है। इसके अतिरिक्त, भारत का पहला पीपीपी मॉडल आधारित हरित कचरा प्रसंस्करण संयंत्र भी इंदौर में स्थापित है जो लकड़ी और पत्तियों से पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाता है।एक दौर ऐसा भी था जब  इंदौर की सड़कों पर कचरा देखा जाता था लेकिन आज यह शहर कचरे से सीएनजी और खाद बनाने में अग्रणी है। इंदौर नगर निगम ने कचरे के शत-प्रतिशत पृथक्करण और रीसाइक्लिंग को सुनिश्चित किया है।नगर निगम ने स्वच्छता के लिए कई नवाचार किए हैं। प्रत्येक घर से कचरा एकत्र करने के लिए उसने अनेक वाहन तैनात किए जिसने  गीले, सूखे और खतरनाक कचरे को अलग करने की प्रक्रिया को जन-जन तक पहुंचाया।

भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में इंदौर ने न केवल देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत इंदौर ने लगातार आठ वर्षों (2017-2024) तक स्वच्छता सर्वेक्षण में पहला स्थान हासिल किया है जो अपने आप में मध्यप्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। आज इंदौर का स्वच्छता मॉडल ने जनभागीदारी, तकनीकी नवाचार और प्रशासनिक दक्षता का एक अनूठा संगम बना है। यह मॉडल न केवल भारत के अन्य शहरों के लिए भी एक प्रेरणा बन चुका है। इंदौर नगर निगम और जिला प्रशासन ने प्रतिदिन स्वच्छता को प्राथमिकता देने का काम किया है। नगर निगम ने कचरा प्रबंधन के लिए नवाचारी योजनाएँ बनाई और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जिससे  इंदौर की जनता ने स्वच्छता को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाया। इंदौर ने न केवल स्वच्छता के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, बल्कि यह अन्य शहरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गया है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में सुपर स्वच्छता लीग में शीर्ष स्थान और लगातार आठवीं बार देश के सबसे स्वच्छ शहर का खिताब जीतना इंदौर की मेहनत, समर्पण और सामूहिक प्रयासों का प्रमाण है। यह शहर न केवल स्वच्छता, बल्कि नागरिकों की जागरूकता और प्रशासनिक कुशलता का प्रतीक बन चुका है।

देश की सर्वश्रेष्ठ राजधानी के रूप में भोपाल ने स्वच्छता के क्षेत्र में भी आदर्श प्रस्तुत किया है। विभिन्न श्रेणियों में ग्वालियर, देवास, शाहगंज और जबलपुर भी पुरस्कृत किए गए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता का जो संकल्प लिया है, उसमें मध्यप्रदेश कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। उन्होंने प्रदेशवासियों का आह्वान किया कि स्वच्छता सर्वेक्षण के इस मापदंड के आधार पर अपने घर, मोहल्ले, कॉलोनी और नगर को स्वच्छ रखें और इस आदर्श जीवन शैली को दुनिया के बीच प्रदर्शित करने का प्रयास करें।

इंदौर का स्वच्छता मॉडल न केवल एक शहर की स्वच्छता की कहानी है बल्कि यह दर्शाता है कि सामूहिक इच्छाशक्ति, तकनीकी नवाचार और प्रशासनिक दृढ़ता के साथ कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। यह मॉडल न केवल स्वच्छ भारत मिशन का प्रतीक है बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास का भी एक जीवंत उदाहरण है। यह मॉडल पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है कि स्वच्छता केवल एक अभियान नहीं, बल्कि एक जीवनशैली हो सकती है। इंदौर ने आठवीं बार स्वच्छता रैंकिंग में देश में शीर्ष स्थान पर रहकर यह साबित कर दिया है कि यदि इरादे मजबूत हों तो देश का कोई भी इलाका कचरे के ढेर से निकलकर स्वच्छता की मिसाल बन सकता है।

Thursday, 31 July 2025

बिहार तक गूंजेगी मध्यप्रदेश के निषादराज सम्मेलन की गूँज


बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में 12 जुलाई को आयोजित हुआ निषादराज सम्मेलन न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इसके गहरे सियासी मायने भी हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य मछुआ समुदाय को सशक्त बनाना, उनकी परंपराओं का सम्मान करना और सामाजिक सदभाव को बढ़ावा देना है। निषादराज सम्मेलन रामायण के पात्र निषादराज गुह से प्रेरित रहा जिन्हें प्रभु श्री राम के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण के लिए जाना जाता है।निषादराज ने प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और सीता माता को गंगा पार करने में सहायता प्रदान की थी जिसे सामाजिक समरसता का बड़ा प्रतीक माना जाता है। इस तरह के बड़े सम्मेलन का आयोजन देश के हृदयप्रदेश मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक नगरी उज्जैन में करके मोहन सरकार ने निषाद समुदाय को यह संदेश दे रही है कि वह विरासत से विकास के अपने विजन पर मजबूती के साथ काम कर रही है। यह कदम सामाजिक एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ इस समुदाय के बीच अपनी पैठ को मजबूत करने की रणनीति का एक हिस्सा भी है।

मध्यप्रदेश में मछुआ समुदाय की आबादी विशेष रूप से उज्जैन, नरसिंहपुर और होशंगाबाद में उल्लेखनीय है। यह समुदाय परंपरागत रूप से मत्स्य पालन और नदी-आधारित आजीविका पर निर्भर है। हालांकि यह समुदाय ओबीसी समुदायों जितना प्रभावशाली नहीं है फिर भी यह कई विधानसभा क्षेत्रों में जातिगत समीकरणों को प्रभावित करता दिखाई देता है। निषादराज सम्मेलन के आसरे भाजपा इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति को बेहतर करने की दिशा में अपने कदम मजबूती एक साथ प्रदेश की सियासत में बढ़ा रही है।

मध्यप्रदेश आज मत्स्य उत्पादन और मछुआ समाज के सशक्तिकरण के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मुख्यमंत्री मछुआ कल्याण योजना जैसे नवाचारों ने हजारों मछुआरों के जीवन में नई आशा की किरण जगाई है। ड्रोन और जीपीएस प्रणाली जैसे नवाचार और योजनाएँ मध्यप्रदेश को मत्स्य पालन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सधे हुए कदम हैं। इससे ग्रामीण समुदायों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने में भी मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने 22 करोड़ 65 लाख रुपए की लागत से 453 स्मार्ट फिश पार्लर का भूमि-पूजन और इंदिरा सागर बांध में लगभग 92 करोड़ लागत से 3360 केज परियोजना का वर्चुअल भूमि-पूजन किया और कहा कि अब मछली पालन सिर्फ पारम्परिक कार्य नहीं, एक आधुनिक उद्योग है। इसमें निवेश बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा और सरकार मस्त्य पालन के लिए मछुआरों को अनुदान देगी। इसमें निवेश बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा। सरकार के प्रयासों से भोपाल में 40 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक एक्वा पार्क का निर्माण किया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि इंदिरा सागर सहित अन्य जलाशयों में 3 लाख से अधिक केज स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि भोपाल में 40 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक मछलीघर का निर्माण किया जा रहा है। आज प्रदेश में वर्तमान में 4.4 लाख हेक्टेयर में मछली पालन कार्य हो रहा है।वर्ष 2024-25 में प्रदेश का मछली उत्पादन 3.81 लाख मैट्रिक टन रहा। प्रदेश में लगभग 2 लाख से अधिक मत्स्य पालक पंजीकृत हैं। राज्य सरकार ने प्रदेश में सिंचाई का रकबा बढ़ाया है, जिसका लाभ मछुआरों को भी मिल रहा है।

मध्यप्रदेश की सियासत में जातिगत समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वोटरों ने भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया था जिसके चलते कांग्रेस सत्ता में आई। हालांकि 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में हुए दलबदल के बाद भाजपा ने फिर से सत्ता हासिल की। वहीँ 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद पार्टी 2028 के विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के लिए अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहती है। डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में निषाद समुदाय को साधने का प्रयास इसी रणनीति का हिस्सा है। यह समुदाय एक दौर में परंपरागत रूप से कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ जुड़ा रहा है अब बिहार ,बंगाल, यूपी जैसे राज्यों के चुनावों में भाजपा के लिए संजीवनी बन सकता है।

डॉ. मोहन यादव ने निषादराज के आयोजन से एक तीर से दो निशाने खेलने की कोशिश की है। पहला सम्मेलन केवल निषाद समुदाय तक सीमित नहीं है। इसका सन्देश अन्य समुदायों में भी जाएगा जिनकी संख्या प्रदेश में कम है। दूसरा यह सम्मेलन मोदी सरकार की सामाजिक समरसता और समावेशी विकास की दिशा में एक नई लकीर खींचेगा जिसकी गूंज आने वाले बिहार चुनावों में सुनाई देगी जिसको कैश कराने की भाजपा पूरी कोशिश करेगी। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से लगभग 45 सीटों पर निषाद और मांझी जातियों का प्रभाव माना जाता है जो राज्य में किंगमेकर मानी जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने भाषणों में दलित, पिछड़ा और आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा में लाने की बात कही है। यह सम्मेलन उसी दिशा में एक कदम है जो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के साथ-साथ 'सबका साथ- सबका विकास और सबका विश्वास ' की छवि को मजबूत करता है। इसके अलावा बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में इस तरह के बड़े आयोजन का होना विरासत से विकास के पीएम मोदी के विजन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

मध्यप्रदेश की सियासत में निषादराज सम्मेलन का आयोजन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक है जो निषाद समुदाय के सशक्तिकरण के साथ-साथ बिहार में भाजपा के निषाद और मांझी वोटबैंक को मजबूत करने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा आने वाले दिनों में बनेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की महाकाल की नगरी उज्जैन में उपस्थिति और बड़े पैमाने पर परियोजनाओं की घोषणा इस समुदाय को यह विश्वास दिलाने का प्रयास है कि भाजपा मछुआ समुदाय के हितों के प्रति संवेदनशील है। 2023 के चुनावों में कांग्रेस ने भी मछुआ समुदाय को लुभाने के लिए कई वादे किए थे लेकिन सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। अब निषादराज सम्मेलन के जरिए भाजपा द्वारा इस समुदाय को देने वाली सौगातें विपक्षी दलों की भविष्य में मुश्किलें बढ़ा सकती हैं।

बिहार में भी मछुआ समुदाय की आबादी भी आगामी चुनावों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। राज्य के 38 जिलों में मछुआ समुदाय विभिन्न क्षेत्रों में अपनी आजीविका के लिए मत्स्य पालन पर निर्भर है। मध्यप्रदेश में निषादराज सम्मेलन के सफल आयोजन की गूंज अब बिहार के गाँवों और पंचायतों तक पहुंचना तय है। मध्यप्रदेश में निषादराज सम्मेलन के माध्यम से लिए गए निर्णयों को भाजपा आगामी बिहार चुनाव में भुनाने की पूरी तैयारी करेगी जिसके केंद्र में उसके स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव रहेंगे। मध्यप्रदेश सरकार के इस आयोजन ने यह दिखाया है कि परंपराओं का सम्मान और विकास एक साथ चल सकते हैं। बिहार अब इस एमपी मॉडल को अपनाकर भविष्य में अपने मछुआ समुदाय को सशक्त बना सकता है। इस सम्मेलन ने निषाद समाज की परंपराओं को आधुनिक संसाधनों से जोड़ने का बेहतरीन प्रयास किया है।

Saturday, 26 July 2025

लगातार आ रहा निवेश,मोहन के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ता मध्यप्रदेश

 देश का हृदयस्थल कहा जाने वाले मध्यप्रदेश डॉ. मोहन यादव के विजनरी नेतृत्व में हाल के वर्षों में औद्योगिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में एक नया गढ़ बनकर उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी दूरदर्शी नीतियों के माध्यम से मध्यप्रदेश में निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। उनकी इन्वेस्टर्स फ्रैंडली नीतियों और ग्लोबल स्तर पर मध्यप्रदेश की ब्रांडिंग करने की कारगर रणनीति ने राज्य को निवेश का एक प्रमुख केंद्र बना दिया है। डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने न केवल निवेश के मोर्चे पर अनेक सफलताएं हासिल की है, बल्कि आर्थिक विकास और औद्योगिक नवाचार में भी नई ऊँचाइयाँ छुई हैं।


मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश को निवेश के लिए अनुकूल बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उनके नेतृत्व में राज्य सरकार ने अनेक इन्वेस्टर्स फ्रेंडली-मित्र नीतियाँ लागू की हैं, जो निवेशकों को आकर्षित करने में सहायक सिद्ध हुई हैं। मध्यप्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, वन संपदा, निरंतर बिजली आपूर्ति और सड़क, रेलवे, व वायु मार्ग का मजबूत नेटवर्क होने के चलते यहाँ पर वर्तमान में निवेशकों के लिए एक आदर्श माहौल मिल रहा है। मोहन सरकार की निवेश नीति निवेशकों के लिए अत्यंत अनुकूल है। यहाँ पर स्टार्ट-अप्स को विशेष प्रोत्साहन और उद्योगों के लिए समयबद्ध अनुमतियाँ सुनिश्चित की जाती हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निवेश को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर इंडस्ट्री कॉन्क्लेव की शुरुआत की जिससे प्रदेश के हर कोने में औद्योगिक विकास को नई गति मिल रही है। उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा, सागर , नर्मदापुरम जैसे शहरों में आयोजित इन कॉन्क्लेव्स ने स्थानीय स्तर पर निवेशकों को आकर्षित किया है। आज उद्योगपति मोहन सरकार की निवेश अनुकूल नीतियों की सराहना कर रहे हैं। ये कॉन्क्लेव न केवल राज्य में व्यापक निवेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं, बल्कि इससे स्थानीय उद्यमियों और छोटे-मध्यम उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने एमएसएमई सेक्टर के लिए 5000 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा की है, जिससे छोटे निवेशकों की बांछे खिली हुई हैं। मोहन सरकार ने अपने कार्यकाल में औद्योगिक विकास के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार कर लिया है जिसमें औद्योगिक पार्कों को बढ़ावा देने के साथ स्मार्ट औद्योगिक टाउनशिप विकसित करने पर जोर दिया गया है। इस पहल से रोजगार के नए अवसर न केवल मिलेंगे बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। हाल ही में लुधियाना में आयोजित इंटरैक्टिव सेशन में एमपी को 15,606 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए।

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश को निवेश के लिए आदर्श गंतव्य बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट इसका जीता जागता उदाहरण रहा जहाँ मोहन का मैजिक इस कदर चला कि इस समिट में 30 लाख 77 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए जो प्रदेश के आर्थिक विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इससे पहले भी एमपी में निवेशक सम्मेलन आयोजित होते रहे लेकिन बड़े निवेश के प्रस्ताव राज्य को नहीं मिल पाए। डॉ. मोहन यादव की मजबूत इच्छा शक्ति का परिणाम है कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के माध्यम से उन्होनें देश और दुनिया में एमपी की पताका फहरा दी। मध्यप्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए डॉ. मोहन यादव ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 को एक महत्वपूर्ण मंच बनाया है। भोपाल में 24-25 फरवरी 2025 को आयोजित इस समिट ने 30.77 लाख करोड़ रुपये के निवेश समझौतों को आकर्षित किया जो मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जाएंगे। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की कुशल रणनीति को जाता है जिसमें देश और विदेश में बड़े रोड शो आयोजित किए गए। इसी तरह से उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा और सागर, नर्मदापुरम जैसे शहरों में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया जिससे राज्य के सभी हिस्सों में निवेश को प्रोत्साहन मिला। इन समिट्स ने लगभग 75,000 रोजगार अवसर सृजित किए। इस समिट में विभिन्न क्षेत्रों जैसे एविएशन, आईटी, कृषि और शहरी विकास में निवेश के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। मोहन के नेतृत्व में मध्यप्रदेश अब केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक निवेशकों के लिए भी एक आकर्षक गंतव्य बन रहा है।

27-31 जनवरी 2025 को हुई डॉ. मोहन यादव की जापान यात्रा मध्यप्रदेश के निवेश परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम थी। इस यात्रा के दौरान जापान को GIS 2025 में ‘पार्टनर कंट्री’ के रूप में शामिल किया गया। जापान की प्रमुख कंपनियाँ जैसे टोयोटा, ब्रिजस्टोन, योकोगावा, यूनिक्लो, और पैनासोनिक ने समिट में भाग लिया और एमपी में इन्वेस्टमेंट करने में दिलचस्पी दिखाई। इस यात्रा में कृषि, डेयरी-फूड प्रोसेसिंग, फिनटेक, आईटी, रोबोटिक्स, फार्मास्युटिकल्स, मेडिकल डिवाइस, इलेक्ट्रिक वाहन, ऑटोमोबाइल, शहरी-औद्योगिक बुनियादी ढांचा, और पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर फोकस किया गया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल के वर्षों में अपनी विदेश यात्राओं के माध्यम से राज्य को वैश्विक निवेश के नक्शे पर स्थापित करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। उनकी रणनीतिक और लक्ष्य-केंद्रित यात्राएँ, विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, जापान, दुबई और स्पेन जैसे देशों में मध्यप्रदेश को औद्योगिक और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुई हैं। इन यात्राओं का मुख्य उद्देश्य विदेशी निवेश को आकर्षित करना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन करना और राज्य की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रचारित करना रहा। डॉ.मोहन यादव की विदेश यात्राओं में प्रमुख उद्योगपतियों, व्यापारिक संगठनों और सरकारी प्रतिनिधियों के साथ अनेक वन-टू-वन बैठकें हुई। इन बैठकों में मध्यप्रदेश की औद्योगिक नीतियों, निवेश के अवसरों और सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं को प्रभावी ढंग से बड़े मंच पर प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा राज्य की सांस्कृतिक और पर्यटन क्षमता को भी वैश्विक मंच पर उजागर किया गया जिससे पर्यटन और सांस्कृतिक क्षेत्र में एमपी के कद में इजाफा हुआ है।

डॉ.मोहन यादव की नवंबर 2024 में यूके और जर्मनी की छह दिवसीय यात्रा ने मध्यप्रदेश को निवेश के लिए आकर्षक डेस्टिनेशन बना दिया। इस दौरान यूके के लंदन और बर्मिंघम, साथ ही जर्मनी के म्यूनिख और स्टटगार्ट में प्रमुख उद्योगपतियों के साथ बैठकें की गईं। इन बैठकों के परिणामस्वरूप 78,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए जिनमें ऑटोमोबाइल, नवीकरणीय ऊर्जा, शिक्षा और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्र शामिल थे। एक तरह यूके में वारविक यूनिवर्सिटी के साथ शैक्षणिक और शोध सहयोग पर चर्चा हुई वहीँ दूसरी तरह जर्मनी में एसएफसी एनर्जी और लेप ग्रुप जैसे संस्थानों के साथ तकनीकी साझेदारी की संभावनाएँ तलाशी गईं।इसी तरह से जनवरी 2025 में जापान की चार दिवसीय यात्रा में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल और प्रोसेस्ड फूड जैसे क्षेत्रों में निवेश के लिए जापानी कंपनियों के साथ सकारात्मक चर्चाएँ की। इस यात्रा ने मध्यप्रदेश में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 के लिए जापानी निवेशकों को आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की।हाल ही में सम्पन्न दुबई यात्रा में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने डीपी वर्ल्ड, जेबेल अली फ्री ज़ोन (जाएफजा) और भारतीय उद्यमियों के साथ रणनीतिक बैठकें कीं। इन बैठकों में भारत मार्ट जैसे वैश्विक व्यापार केंद्र की स्थापना पर सहमति बनी। बीएमडब्ल्यू डेवलपर्स (2,750 करोड़), कोनारेस मेटल (640 करोड़) और रिलायंस डिफेंस (250 करोड़) जैसे निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। अरब संसद के अध्यक्ष मोहम्मद अल यामाहि ने भी मध्यप्रदेश में निवेश के लिए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। स्पेन के बार्सिलोना और मैड्रिड में मोहन यादव ने टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल और डाटा सेंटर जैसे क्षेत्रों में निवेश की संभावनाओं पर चर्चा की। बार्सिलोना में सबमर कंपनी के साथ 3,800 करोड़ रुपये के डाटा सेंटर की स्थापना के लिए एमओयू साइन किया गया। रॉका ग्रुप के साथ देवास में 164.03 करोड़ रुपये के निवेश और 445 लोगों को रोजगार प्रदान करने पर संतुष्टि व्यक्त की गई। हेलोटेक्स ग्रुप के साथ वस्त्र उद्योग के विस्तार और एसएसएल-कोटिंग्स के साथ टिकाऊ सड़क निर्माण तकनीक टेरा-3000 पर चर्चाएँ हुई।स्पेन में लालीगा लीग मुख्यालय के दौरे के दौरान फुटबॉल इंफ्रास्ट्रक्चर और स्पेनिश कोचिंग आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर सहमति बनी जिससे मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थलों जैसे साँची और भीमबैठका का वैश्विक प्रचार होगा। स्पेन में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने अपनी यात्राओं के दौरान मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन क्षमता को भी बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया। स्पेन में प्रवासी भारतीय समुदाय से मुलाकात के दौरान उन्होंने भारतीय संस्कृति की तुलना दूध में शक्कर घुलने से की और मध्यप्रदेश की समृद्ध विरासत को उजागर किया। इस यात्रा में उज्जैन, खजुराहो, साँची जैसे पर्यटन स्थलों को वैश्विक मंच पर एक नयी पहचान मिली जिससे पर्यटन क्षेत्र में रोजगार और आर्थिक विकास की संभावनाओं पर इजाफा होगा।

मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की दुबई और स्पेन यात्रा से 11,000 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ जिससे 15,000 युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित हुए। इन विदेश यात्राओं के परिणामस्वरूप मध्यप्रदेश को अब तक कुल 31,551 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं जिनसे 17,827 से अधिक लोगों के लिए रोजगार के अवसर सृजित होने की उम्मीद है।मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने मध्यप्रदेश को न केवल औद्योगिक बल्कि आध्यात्मिक और वेलनेस हब के रूप में भी स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। पिछले दिनों उज्जैन में आयोजित स्पिरिचुअल एंड वेलनेस समिट 2025 में 1950 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। इस समिट ने मध्यप्रदेश को भारत के वेलनेस मिशन का नेतृत्व करने वाला राज्य बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में मेडिसिटी की स्थापना और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के साथ समझौता इस दिशा में उनकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन जैसे आध्यात्मिक संगठनों ने भी उज्जैन में केंद्र स्थापित करने के लिए पत्र सौंपा है जो प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को और समृद्ध करेगा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव  ने अचारपुरा में 406 करोड़ के निवेश वाली 5 औद्योगिक इकाइयों का भूमि-पूजन किया और  8 उद्योगों के निवेशकों को भूमि आवंटन के आशय-पत्र भी सौपें  जिसमें 406 करोड़ रूपये का निवेश और 1500 से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा।

मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने निवेशकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर पहले से ही विशेष जोर दिया है। आज मध्यप्रदेश में सरप्लस बिजली, उत्कृष्ट बुनियादी ढांचा और कुशल मानव संसाधन उपलब्ध हैं। अब प्रदेश में उद्योग-अनुकूल नीतियां निवेशकों को इन दिनों खूब लुभा रही हैं। सरकार द्वारा निवेशकों को 'प्लग एंड प्ले' मॉडल, तेज़ स्वीकृति प्रक्रियाएँ और बेहतर लॉजिस्टिक्स जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके अतिरिक्त 100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों के लिए कस्टमाइज्ड नीतियां, सिंगल विंडो सिस्टम को प्रोत्साहन और विभिन्न विभागों की तरफ से विशेष सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है जो निवेशकों के लिए अतिरिक्त बूस्टर डोज का काम कर रहा है। नीति आयोग ने भी मध्यप्रदेश को तेजी से प्रगति करने वाले राज्यों में अग्रणी माना है जो मुख्यमंत्री डॉ. यादव के दूरदर्शी नेतृत्व की व्यापक प्रभावशीलता को दिखा रहा है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6% योगदान देने वाला राज्य बनाना है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2047-48 तक 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। डॉ. मोहन यादव का कुशल और दूरदर्शी नेतृत्व मध्यप्रदेश को न केवल औद्योगिक और शहरी विकास में बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एक ग्लोबल पहचान दिलाने की दिशा में अग्रसर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने बेहद कम समय मे निवेश और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा है। यह न केवल मध्यप्रदेश की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है बल्कि भारत के विकास में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस निवेश ने मध्यप्रदेश को निवेशकों के लिए न केवल एक आदर्श डेस्टिनेशन बनाया है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत बनाने की दिशा में यह एक सधा हुआ कदम है।



Thursday, 24 July 2025

सफल रहा डॉ. मोहन यादव का स्पेन दौरा, एमपी बनेगा निवेश और रोजगार का ग्लोबल हब

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव का हालिया स्पेन दौरा राज्य के आर्थिक और तकनीकी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। यह दौरा केवल एक अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक यात्रा नहीं था, बल्कि मध्यप्रदेश को वैश्विक निवेश, नवाचार और तकनीकी सहयोग के मानचित्र पर सशक्त रूप से स्थापित करने का एक सशक्त प्रयास भी था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इन्वेस्टर्स फ्रेंडली नीतियों के चलते आज एमपी विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक डेस्टिनेशन बन गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने दौरे में स्पेन के उद्योगपतियों और निवेशकों को मध्यप्रदेश में निवेश के लिए आमंत्रित किया। स्पेन दौरे के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने मध्यप्रदेश को वैश्विक मंच पर एक उभरते हुए निवेश-अनुकूल राज्य के रूप में प्रस्तुत किया।

डॉ. मोहन यादव ने बार्सिलोना और मैड्रिड जैसे प्रमुख स्पेनिश शहरों का दौरा किया और वहां की विभिन्न औद्योगिक, तकनीकी और नवाचार केंद्रित संस्थाओं से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश में उपलब्ध निवेश संभावनाओं, श्रमशक्ति, संसाधनों और सरकार की इन्वेस्टर्स फ्रैंडली नीतियों को प्रस्तुत करते हुए विदेशी निवेशकों को राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया।मध्यप्रदेश को स्पेन में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने “ इन्वेस्ट इन एमपी ” पहल के तहत वैश्विक निवेश मंच पर बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया। डॉ. मोहन यादव ने बार्सिलोना और मैड्रिड जैसे प्रमुख स्पेनिश शहरों का दौरा किया और वहां की विभिन्न औद्योगिक, तकनीकी और नवाचार केंद्रित संस्थाओं से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश में उपलब्ध निवेश संभावनाओं, श्रमशक्ति, संसाधनों और सरकार की नीतियों को प्रस्तुत करते हुए विदेशी निवेशकों को राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया। मध्यप्रदेश को एक ईको फ्रेंडली टेक्सटाइल हब के रूप में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रस्तुत किया गया। पीएम मित्र टेक्सटाइल पार्क की स्पेन के निवेशकों के बीच जबरदस्त ब्रांडिंग की गई जहाँ निवेश की संभावनाओं पर सीएम का पूरा जोर रहा। मैड्रिड में आयोजित 'इन्वेस्ट इन मध्य प्रदेश बिजनेस फोरम' में मुख्यमंत्री ने निवेशकों को संबोधित किया। उन्होंने मध्य प्रदेश की औद्योगिक क्षमताओं, निवेश-अनुकूल नीतियों और लॉजिस्टिक्स, पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, टेक्सटाइलऔर नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों पर प्रकाश डाला। मुख्यमंत्री ने भारत और स्पेन के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समानताओं का उल्लेख करते हुए दोनों देशों को "भाई-भाई" के रूप में वर्णित किया। उन्होंने स्पेन के साथ भारत के 9.32 बिलियन डॉलर के व्यापारिक संबंधों को रेखांकित किया और इसे और मजबूत करने की संभावनाओं पर जोर दिया। स्पेन की अग्रणी कंपनियों और संस्थानों के साथ मुख्यमंत्री ने कई समझौतों और प्रस्तावों पर विचार-विमर्श किया। विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट सिटी विकास, स्वच्छ जल प्रबंधन, एग्रीटेक और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में साझेदारी की संभावनाओं पर सकारात्मक बातचीत हुई। फूड प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल, हरित ऊर्जा, खनन सहित कई क्षेत्रों में निवेश के नए द्वार मुख्यमंत्री डॉ.यादव के स्पेन दौरे ने खोले हैं।

बार्सिलोना में कई महत्वपूर्ण बैठकों का आयोजन हुआ। मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने डेटा सेंटर कूलिंग तकनीक में विशेषज्ञता रखने वाली कंपनी सबमर के मुख्यालय का दौरा किया और मध्यप्रदेश में डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए संभावित निवेश और साझेदारी पर चर्चा की। स्पेन यात्रा में सबमर के साथ मध्यप्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम का एक समझौता हुआ जिसके तहत टिकाऊ डेटा सेंटर और इमर्शन कूलिंग तकनीक पर सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। यह मध्यप्रदेश को एआई और डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।इसके अलावा विश्व प्रसिद्ध परिधान कंपनी इन्डिटेक्स के साथ टेक्सटाइल सेक्टर में सहयोग की संभावनाओं पर विचार-विमर्श हुआ। रॉका ग्रुप और हेलोटेक्स ग्रुप जैसी नामी गिरामी कंपनियों के साथ भी कई बैठकें हुई जिनमें टेक्सटाइल, सेनेटरीवेयर और टिकाऊ सड़क निर्माण तकनीक जैसे क्षेत्रों में निवेश की संभावनाएं तलाशी गई। मुख्यमंत्री डॉ.यादव ने स्पेन के निवेशकों को मध्य प्रदेश की 18 औद्योगिक नीतियों और सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं से अवगत कराया जो इसे निवेश के लिए आकर्षक बनाती हैं।विश्व की अग्रणी टेक्सटाइल मशीनरी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने एक उच्च स्तरीय राउंड टेबल बैठक की। बैठक ने मध्यप्रदेश को टेक्सटाइल मशीनरी मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करने और यूरोपीय टेक्नोलॉजी प्रोवाइडर्स के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बैठक में यूरोपीय टेक्सटाइल मशीनरी कंपनियों को मध्यप्रदेश में अपनी उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर आमंत्रित किया गया। मध्यप्रदेश में टेक्सटाइल मशीनरी मैन्युफैक्चरिंग हब की स्थापना से लेकर भारतीय और यूरोपीय कंपनियों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने हुए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और नॉलेज एक्सचेंज की संभावनाओं पर गहन मंथन हुआ ।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बार्सिलोना स्थित फीरा दे बार्सिलोना मोंटजुइक मेला परिसर का भी दौरा किया। 1932 में स्थापित यह केंद्र बार्सिलोना के ऐतिहासिक मोंटजुइक क्षेत्र में स्थित है, जो सांस्कृतिक और स्थापत्य कला के नजरिए से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह यूरोप के सबसे बड़े व्यापार मेलों में से एक है। यहां उन्होंने स्मार्ट सिटी मॉडल को समझा और मध्यप्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के निवेश सम्मेलन और प्रदर्शनी केंद्र स्थापित करने की संभावनाओं पर चर्चा की। मुख्यमंत्री के इस दौरे का मुख्य मकसद स्पेन के स्मार्ट सिटी मॉडल, एनवायरमेंटल मैनेजमेंट, अर्बन मोबिलिटी और इनोवेशन सिस्टम का अवलोकन करना था, जिससे मध्यप्रदेश में भी विकास को तेज गति दी जा सके।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 250 एकड़ में फैले विशाल कैंपस मर्काबारना के फल-सब्जी बाजार का भी दौरा किया और कैटेलोनिया के विदेश मंत्री जैम डच गुइलोट के साथ महत्वपूर्ण बैठक की। उन्होंने कहा कि यहां फलों और सब्जियों की क्वालिटी, पैकिंग, प्रोसेसिंग और वितरण की आधुनिक व्यवस्था किसानों के लिए अनुकरणीय मॉडल है। मध्यप्रदेश में फलों का उत्पादन बढ़ रहा है। ऐसे में इस तरह के बाजार मॉडल से राज्य के किसानों को लाभ मिल सकता है । मुख्यमंत्री मोहन यादव के स्पेन दौरे के दौरान सबमर टेक्नोलॉजीज ने मध्यप्रदेश सरकार के साथ एमओयू साइन किया। इस समझौते का उद्देश्य प्रदेश में टिकाऊ डेटा सेंटर स्थापित करना और निवेश को बढ़ावा देना है। सबमर कंपनी इमर्शन कूलिंग सॉल्यूशन और ग्रीन डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित करेगी जिससे मध्यप्रदेश के विकास को नई दिशा मिलेगी।

स्पेन की सोलर और विंड एनर्जी कंपनियों ने मध्यप्रदेश में उत्पादन इकाइयां लगाने में रुचि दिखाई।बार्सिलोना के तकनीकी स्टार्टअप इन्क्यूबेशन सेंटर्स के साथ साझा शोध और स्टार्टअप सहयोग की पहल की गई। स्पेन की पर्यटन कंपनियों ने मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों को वैश्विक मंच पर प्रमोट करने में रुचि दिखाई।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के स्पेन दौरे से न केवल राज्य में बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे युवाओं के लिए उच्च तकनीकी शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे। मोहन सरकार की मंशा है कि स्पेन के साथ मिलकर स्किल डवलपमेंट प्रोग्राम्स की शुरुआत की जाए ताकि युवा वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रशिक्षित हो सकें। इस दौरे से मध्यप्रदेश और स्पेन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सहयोग की संभावनाओं को बल मिला। विश्वविद्यालय स्तर पर छात्र-शिक्षक आदान-प्रदान, शोध परियोजनाएं और भाषाई अध्ययन कार्यक्रमों की अनगिनत संभावनाएं इस दौरे में तलाशी गई। निवेश प्रस्तावों के माध्यम से नए उद्योगों की स्थापना से हजारों युवाओं को मध्यप्रदेश में रोजगार मिलने की संभावना जताई जा रही है।

ला -लीगा (स्पेनिश फ़ुटबॉल लीग) के साथ साझेदारी एक बड़ी पहल है जिससे प्रदेश के युवा खिलाड़ियों का प्रशिक्षण, स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और अंतरराष्ट्रीय एक्सपोज़र बढ़ेगा। स्पेन फिल्म कमीशन के साथ फिल्म निर्माण, स्किलिंग, को‑प्रोडक्शन, फेस्टिवल एक्सचेंज पर भी कई समझौते हुए हैं।इसके अतिरिक्त, स्पेन फिल्म आयोग और स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर डिजाइन फर्म ‘पॉपुलस’ के साथ बैठकों में फिल्म शूटिंग और आधुनिक खेल अधोसंरचना विकास पर भी गंभीर विचार-विमर्श हुआ। एफसी बार्सिलोना फाउंडेशन जैसे संगठनों के साथ खेल, युवा नेतृत्व और जीवन कौशल कार्यक्रमों में साझेदारी की संभावनाएं तलाशी गई। दोनों ने स्मार्ट सिटी, शहरी परिवहन और हरित भवनों के क्षेत्र में भी तकनीकी सहयोग बढ़ाने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह के निर्माण पर सहमति जताई।सीएम डॉ. मोहन यादव और कैटेलोनिया के विदेश मंत्री के बीच मध्यप्रदेश के विश्व धरोहर स्थलों खजुराहो, सांची और भीमबेटका को यूरोप में प्रमोट करने के लिए संयुक्त पर्यटन प्रचार अभियान चलाने पर भी चर्चा हुई। इसी तरह इंडीटेक्स के साथ पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन को बढ़ावा देने की पहल का भी स्वागत किया जाना चाहिए। इस दौरे में आईआईटी इंदौर, आईआईएसईआर भोपाल और बार्सिलोना के विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है जिससे शिक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग में एक बड़ी लकीर खिंचेगी। स्पेन फिल्म कमीशन के साथ एमओयूएमपी को फिल्म और पर्यटन के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुचायेंगे। स्पेन प्रवास में  सीएम डॉ.यादव ने  बार्सिलोना के तीन प्रमुख स्थलों पार्क गुएल, सागरदा फैमिलिया और पिकासो संग्रहालय का भ्रमण किया और कहा कि मध्यप्रदेश में बार्सिलोना की तरह  थीम बेस्ड पार्क विकसित किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश के विकास में कला, संस्कृति और धरोहर संरक्षण की अहम भूमिका है और इन धरोहरों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह चार दिवसीय स्पेन दौरा न केवल निवेश की दृष्टि से सफल साबित हुआ है, बल्कि यह मध्य प्रदेश को "हरित, तकनीकी, सांस्कृतिक और निवेश‑केन्द्रित राज्य" के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह पहल देश के हृदयस्थल मध्यप्रदेश को 'आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश' की दिशा में अग्रसर करने के साथ-साथ उसे एक वैश्विक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक सधी हुई शुरुआत है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का स्पेन दौरा मध्यप्रदेश के लिए नवाचार और आर्थिक सहयोग की दृष्टि से भी सफल साबित हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का स्पेन दौरा मध्य प्रदेश को वैश्विक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक नई लकीर खींचने में कामयाब हुआ है। स्पेन दौरे  से न केवल एमपी में ग्लोबल निवेश की संभावनाओं को नए पंख लगेंगे बल्कि यह भारत और स्पेन के बीच सांस्कृतिक और तकनीकी सहयोग को भी बढ़ावा देगा। खाद्य प्रसंस्करण, खेल, टेक्सटाइल, डेटा सेंटर,फिल्म निर्माण और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में हुई सकारात्मक चर्चाओं से मध्यप्रदेश में ग्लोबल निवेश को नई गति मिलने की पूरी उम्मीद है।