Saturday, 27 September 2025

नवरात्र : शक्ति की आराधना का महापर्व


नवरात्र भारतीय संस्कृति में एक पवित्र पर्व है जो दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक माना जाता है। यह नौ रातों और दस दिनों का उत्सव माँ दुर्गा की पूजा और उनके नौ रूपों के सम्मान में मनाया जाता है। नवरात्र का अर्थ है नौ रातें और यह पर्व वर्ष में दो बार चैत्र मार्च-अप्रैल और शारदीय सितंबर-अक्टूबर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है। 

 
एक ही परम तत्व परमपुरुष पराशक्ति के रूप में सर्वत्र व्यापक है।  शास्त्रकारों ने एक ही  शक्ति को कभी पुरुष के रूप में तो कभी देवी के रूप में स्वीकारा है। सब के घट में एक समान विराजमान वह  दिव्य शक्ति प्रकाश के रूप में हमेशा मौजूद रहती है जिसे जीवन शक्ति कहा जाता है और उसका दर्शन होना ही शक्ति की आराधना है। दुष्टों का  संहार करके भक्तों की रक्षा करने हेतु कभी काली तो कभी दुर्गा  के रूप में उस शक्ति का अवतरण इस धरा पर हुआ है। दुर्गा जी की पूजा  अर्चना का विधान वेद, पुराण, उपनिषदों हिन्दुओं के अन्य धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। वेद में 'एकोएहं बहुस्याम' और 'अजाय मानों बहुधा  ब्यजायत ' के रूप में और देवी पुराण में 'सा वाणी साच सावित्री विप्राधिष्ठात' वहां सर्व दुर्गा के रूप में संस्थापित है। मार्कण्डेय पुराण में स्वयं मान जएकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा। पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः अर्थात मैं ही दुर्गा हूँ , सर्वशक्ति स्वरूपा हूँ और मुझमें ही पूरी सृष्टि विलीन है। आशय यह है कि यह विशाल सृष्टि उत्पन्न होती है, बढ़ती है और विभिन्न रूपों में परिवर्तित होकर  अंत में विनिष्ट हो जाती है। 
 
देवी पुराण में एक बड़े रोचक कथा प्रसंग की चर्चा की गयी है। अक्सर भ्रम में पड़  जाने वाले देवर्षि नारद को एक बार भ्रम हो गया।  ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों सर्वश्रेष्ठ हैं तो भला ये तीनों किस महाशक्ति का स्मरण करते हैं ? नारद जी अपने सन्देश निवारण हेतु शिव के पास गए और बोले मुझे ब्रह्मा, विष्णु और महेश से बढ़कर कोई अन्य देवता नहीं दिखाई देता है फिर आप तीनों से ऊंचा कौन है जिसकी उपासना और स्मरण आप करते हैं ? शिव मुस्कुराये और बोले  हे ऋषिवर सूक्ष्म और शूल शरीर से परे जो महाप्राण आदिशक्ति जगदम्बा  है वही तो परब्रह्म स्वरुप है। वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही  सृष्टि की रचना, पालन और संहार करने में समर्थ है। वस्तुतः वह आदिशक्ति दुर्गा निर्गुण स्वरूप है परन्तु उसे किसी भी रूप मे मन समय -समय पर धर्म की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए साकार होना पड़ता है। इसी  समय-समय पर पार्वती,दुर्गा,काली, चंडी, सरस्वती आदि अवतार धारण किये हैं।  इसी जगत जननी का सभी देव भी स्मरण करते हैं। वैसे भी आदिशक्ति स्वरुप दुर्गा में सभी  देवताओं का कुछ न कुछ अंश शामिल है।

दुर्गाशप्तशती के दूसरे अध्याय में देवी स्वरुप का वर्णन करते हुए बतलाया गया है भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख प्रकट  हुआ। यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चन्द्रमा के तेज से स्तन, इंद्रा के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से  नितम्ब, ब्रह्म के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पैरों की अंगुलियां, वसुओं के तेज से दोनों हाथों की अंगुलियां, प्रजापति के तेज से सम्पूर्ण दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौहें, वायु के तेज से कान, अन्य देवताओं के तेज से देवी के भीं- भीं अंग बने।  इसी प्रकार सभी अमोघ शक्तियों से दुर्गा के रूप में एक आदिशक्ति का सृजन किया  गया इसलिए यह स्वरुप सभी देवताओं के लिए स्मरणीय हो गया।  आज दो नवरात्रि के रूप में माँ जगदम्बा की पूजा शारदीय और वासंतीक दोनों नवरात्र दोनों में जारी है। शारदीय नवरात्र आश्विन मास में और वासंतिक नवरात्र अभी चैत्र माह में होते हैं। चैत्र वर्ष प्रतिपदा से हिन्दुओं का नया संवत्सर शुरू होता है।  दोनों नवरात्र का समान  महत्व  है। नौ दिन और नौ रातों तक  माँ दुर्गा के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा की जाती है।  यह आज तक रहस्य बना हुआ है।  दुर्गा की पूजा सबसे  पहले राम ने की या किसी अन्य ने लेकिन इतना तय है लंका पर चढ़ाई और रावण वध से पहले राम ने आदिशक्ति स्वरूप मानकर दुर्गा जी  की पूजा की। यह स्थान भी रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। नवरात्र महोत्सव आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति की विजय का प्रतीक है। नवरात्र में प्रथमा से लेकर नवमी तक शक्ति के 9 स्वरूपों की पूजा -अर्चना होती है। ये नौ शक्तियां बहनों का स्वरुप हैं और इन नौ शक्तियों के विभिन्न नाम रूप के कारण शारदीय  नवरात्र  उत्सव का उल्लास  देखते ही बनता  है।

 9 दिनों  में लोगों की भक्ति भावना, आस्था और शक्ति देखते ही बनती है। माता की  नौ शक्तियों के नाम हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री। प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप की पूजा की जाती है।जैसे प्रथम दिन  शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन  कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता,छठे दिन  कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री। ये नौ रूप नारी शक्ति के विभिन्न पहलुओं को भी  दर्शाते हैं। नवरात्र में अंतिम दिन पर कन्या पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन नौ कुमारी कन्याओं को देवी स्वरुप मानकर लोग उनका विशेष पूजन  भोजन, उपहार देकर करते हैं। कन्या पूजन में दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को पूजा जाता है। दस वर्ष से अधिक वर्ष की कन्याओं  का पूजन वर्जित है।  दो वर्ष की कन्या कन्याकुमारी , तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी , पांच वर्ष की रोहिणी, छह वर्ष की ;काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शम्भवी,  नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की सुभद्रा स्वरूपा मानी गयी है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक राक्षस महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर बुराई पर विजय प्राप्त की। यह विजय पर्व दशहरा के रूप में मनाया जाता  है। 

नवरात्र का उत्सव भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। गुजरात में गरबा और डांडिया नृत्य इस पर्व का मुख्य आकर्षण हैं जो सामूहिक उत्सव और एकता का प्रतीक हैं। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में यह पर्व भव्य पंडालों और मूर्ति पूजा के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा इस उत्सव का हिस्सा है जो भगवान राम की रावण पर विजय को दर्शाते हैं। नवरात्र की पूरे देश में विशेष धूम रहती है। नवरात्र केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है।  यह सामाजिक एकता को भी  बढ़ावा देता है। लोग एक साथ इकट्ठा होकर नृत्य, गीत और भक्ति में लीन हो जाते हैं। यह पर्व नारी शक्ति के सम्मान का भी प्रतीक है जो समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। नवरात्र का पर्व हमें आंतरिक शुद्धता और आत्म-नियंत्रण का महत्व भी सिखाता है। यह समय आत्म-चिंतन, उपवास और भक्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है। उपवास के माध्यम से लोग अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं जबकि माँ दुर्गा की पूजा से वे दैवी शक्ति और सकारात्मकता की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, सत्य और धर्म की शक्ति से हर बुराई पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
 
  नवरात्र में की गई पूजा मानव मन की मलिनता को दूर करके भगवती दुर्गा के चरणों में लीन  होकर जीवन में सुख, शांति और ऐश्वर्य की समृद्धि लाती है। कन्या पूजन से अनेक व्याधियों से मुक्ति होने की वैज्ञानिक पुष्टि भी होती है। उस शक्ति स्वरूपा का दर्शन  नवरात्र में करना  हर किसी के  जीवन का लक्ष्य  होना चाहिए । नवरात्र अर्थात शक्ति की आराधना का महापर्व है जिससे धर्म, अर्थ , काम, मोक्ष का पुरुषार्थ भी सफल होता है।  नवरात्र न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो हमें शक्ति, साहस और भक्ति की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें यह विश्वास दिलाता है कि दैवीय शक्ति हमेशा हमारे साथ है जो हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने की ताकत देती है। नवरात्र हमें जीवन में सकारात्मकता की ओर ले जाती  है। 

Wednesday, 17 September 2025

मोहन के नेतृत्व में अब 'कॉटन कैपिटल' बनने की राह पर मध्यप्रदेश


मध्यप्रदेश अपनी समृद्ध कृषि विरासत के लिए जाना जाता है। यहां की उपजाऊ भूमि और विविध जलवायु ने इसे कपास उत्पादन का प्रमुख केंद्र बना दिया है लेकिन अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में राज्य न केवल देश का प्रमुख कपास उत्पादक बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर 'कॉटन कैपिटल' के रूप में उभरेगा। यह यात्रा केवल कृषि तक सीमित नहीं है, बल्कि टेक्सटाइल उद्योग, सस्टेनेबल प्रोडक्शन और अंतरराष्ट्रीय निवेश को जोड़कर एक नई आर्थिक क्रांति की पटकथा को तैयार कर रहा है। देश का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में अब निवेश और रोजगार की दृष्टि से तेजी से उड़ान भर रहा है। धार जिले के बदनावर में  धार जिले के भैंसोला गांव में  प्रदेश का नया  टेक्सटाइल हब स्थापित होने जा रहा है। यह परियोजना न केवल मध्यप्रदेश की आर्थिक तस्वीर को बदलेगी बल्कि लाखों लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी खोलेगी।


मध्यप्रदेश पहले से ही भारत का एक प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है। राज्य के मालवा-निमाड़ क्षेत्र विशेष रूप से खरगोन, बुरहानपुर, धार और झाबुआ जिलों में कपास की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां की काली मिट्टी कपास के लिए आदर्श है जो फसल को प्राकृतिक पोषण प्रदान करती है। मध्यप्रदेश के लगभग 18 जिलों  में कपास की खेती होती  है। करीब 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हर साल लगभग 24 लाख टन कपास पैदा होता है।  देश का लगभग 40 प्रतिशत कपास  मध्यप्रदेश से आता है शायद यही वजह है कि वस्त्र उद्योग के लिए मध्यप्रदेश सबसे मुफीद साबित हुआ है और धार के पीएम मित्रा पार्क की दिशा में एमपी के कदम तेजी से बढे हैं। पीएम मित्रा पार्क इस क्षेत्र के किसानों को उनके उत्पाद के लिए बेहतर मूल्य और स्थायी बाजार उपलब्ध कराएगा। परियोजना के तहत स्थापित होने वाली वस्त्र इकाइयां कटाई, बुनाई, रंगाई, छपाई और परिधान निर्माण जैसी सभी गतिविधियों को एकीकृत करेंगी। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर औद्योगिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।

राज्य में ऑर्गेनिक कॉटन का उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के जिलों में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन होता है। इनमें प्रमुख रूप से इंदौर, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, खरगौन, बड़वानी, खण्डवा और बुरहानपुर शामिल हैं। पिछले तीन वर्षों में कपास उत्पादन की स्थिति अच्छी रही है। वर्ष 2022-23 में 8.78 लाख मीट्रिक टन, 2023-24 में 6.30 लाख मीट्रिक टन और 2024-25 में 5.60 लाख मीट्रिक टन कपास उत्पादन हुआ। मध्यप्रदेश से वर्ष 2024-25 में 9,200 करोड़ रुपये से अधिक का टेक्सटाइल निर्यात हुआ है।  इसके अतिरिक्त प्रदेश के अन्य जिलों में भी कपास की अच्छी फसल ली जाती है। देश में ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादन में मध्यप्रदेश अग्रणी है। यही वजह है कि वस्त्र उद्योग के लिए मध्यप्रदेश सबसे उपयुक्त राज्य साबित हुआ है। इसी पृष्ठभूमि के आधार पर धार को पीएम मित्रा पार्क की स्थापना के लिए चुना गया है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा बल्कि वैश्विक ब्रांड्स के लिए एमपी को ग्लोबल हब  बनाएगा। सीएम बनते ही डॉ. मोहन यादव ने  निवेश को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं जिससे निवेशकों का भरोसा मध्यप्रदेश की तरफ बढ़ रहा है।  

भारत सरकार ने देश के 7 राज्यों में पीएम मित्रा पार्क यानी  पीएम मेगा इंडीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपरैल की स्थापना को अंतिम रूप दिया है जिसमें  तमिलनाडु के विरुद्धनगर, तेलंगाना के वारंगल, गुजरात के नवसारी, कर्नाटक के कलबुर्गी, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, मध्यप्रदेश के धार और महाराष्ट्र के अमरावती में पीएम मित्रा पार्क स्थापित होने जा रहे हैं जिसका उद्देश्य 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश लाना और करीब 20 लाख रोजगार देना है। पीएम मित्रा पार्क प्रधानमंत्री के 5 एफ विजन फार्म टू फाइबर, फाइबर टू फैक्ट्री, फैक्ट्री टू फैशन, और फैशन टू फॉरेन पर आधारित है। करीब 2,158 एकड़ में विकसित हो रहा यह पार्क विश्व स्तरीय सुविधाओं से सुसज्जित है। यहां 20 एमएलडी  का कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट, 10 एमवीए  का सौर ऊर्जा संयंत्र, पानी और बिजली की पुख्ता आपूर्ति, आधुनिक सड़कें और 81 प्लग-एंड-प्ले यूनिट्स जैसी व्यवस्थाएँ विकसित की जा रही हैं। श्रमिकों और महिला कर्मचारियों के लिए आवास और सामाजिक सुविधाएं इसे केवल औद्योगिक क्षेत्र नहीं, बल्कि आदर्श औद्योगिक नगर का रूप देती हैं। धार में स्थापित हो रहे देश के पहले पीएम मित्रा पार्क के शिलान्यास के पहले ही देश की अग्रणी 114 टेक्सटाइल कम्पनियों से 23 हजार करोड़ रूपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हो चुके है। इन प्रस्तावों में से 91 कम्पनियों और इकाइकों के आवेदन स्वीकृत किये जाकर 1294 एकड़ से अधिक भूमि आवंटित किये जाने की अनुशंसा की जा चुकी है। देश की जिन अग्रणी टेक्सटाइल कंपनियों को पीएम मित्रा पार्क में भूमि आवंटित की गई है उनके द्वारा बड़े स्तर पर निवेश के प्रस्ताव दिए गये हैं।  कॉटन  इंडस्ट्री से जुड़े  कई दिग्गज उद्योग समूह यहां आकर निवेश की रुचि दिखा चुके हैं। इससे न केवल प्रदेश को औद्योगिक लाभ मिलेगा बल्कि निर्यात को भी नई दिशा मिलेगी। धार से तैयार वस्त्र और परिधान अब सीधे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंचेंगे और मध्यप्रदेश वैश्विक टेक्सटाइल हब के रूप में अपनी अलग पहचान बनाएगा। धार जिले का भैसोला क्षेत्र जो कपास उत्पादन के लिए जाना जाता है अब  इस परियोजना के माध्यम से आर्थिक समृद्धि का नया अध्याय लिखेगा। इन प्राप्त निवेशों से यार्न, फैब्रिक और गारमेंट उत्पादन की संपूर्ण वैल्यू चेन यहीं विकसित होगी जिससे प्रदेश का टेक्सटाइल उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकेगा। पीएम मित्रा पार्क में भूमि आवंटन की प्रक्रिया भी तेजी से आगे बढ़ रही है और शेष भूमि भी चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराई जा रही है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  ने राज्य को 'कॉटन कैपिटल' बनाने का स्पष्ट विजन प्रस्तुत किया है। उनका नेतृत्व किसान-केंद्रित नीतियों और निवेश-अनुकूल माहौल पर आधारित है। इस वर्ष स्पेन की यात्रा के दौरान  उन्होंने इंडीटेक्स के अधिकारियों से मुलाकात की और मध्यप्रदेश को ऑर्गेनिक कॉटन का वैश्विक हब बताया। इस मुलाकात में धार जिले में पीएम मित्रा पार्क का भी  जिक्र किया।  इसी तरह में जापान यात्रा के दौरान उन्होनें यूनिक्लो  के संस्थापक तादाशी यानाई से कपास खेती और उद्योग विस्तार पर चर्चा की। उन्होंने यूनिक्लो को मध्यप्रदेश में उत्पादन और वितरण इकाइयां स्थापित करने का न्योता दिया। यह प्रयास राज्य के टेक्सटाइल निर्यात को बढ़ावा देंगे बल्कि यूरोप जैसे देशों में एमपी को बड़ा बाजार उपलब्ध कराएँगे। मोहन सरकार की 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' नीतियां निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं। हाल ही में कोलकाता में हुए  निवेशक सम्मेलन में भी टेक्सटाइल सेक्टर को प्रमुखता दी गई, जहां 14600 करोड़ के निवेश प्रस्ताव मिले।  इसके अलावा राज्य सरकार कॉटन-टू-कार्बन फाइबर जैसे इनोवेटिव क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा दे रही है जो टेक्सटाइल को हाई-टेक बनाएगा। मोहन सरकार ने पर्यावरण-अनुकूल खनन और ग्रीन एनर्जी जैसी नीतियों के साथ टेक्सटाइल सेक्टर को जोड़ा है। धार में पीएम मित्रा पार्क एनवायरनमेंटल, सोशल, गवर्नेंस के  मानकों पर आधारित होगा जो  आने वाले  दिनों में किसानों को ट्रेनिंग और मार्केट लिंकेज प्रदान कर राज्य आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करेगा। एमपी में  पहले से ही ट्राइडेंट ग्रुप, वर्धमान, ग्रासिम, नाहर, रेमंड, प्रतिभा सिन्टेक्स, गोकलदास एक्सपोर्ट, महिमा ग्रुप और सागर ग्रुप जैसे बड़े औद्योगिक समूह है। इन कंपनियों की उपस्थिति से यार्न, फैब्रिक, गारमेंट और मशीनरी निर्माण की संपूर्ण वैल्यू चेन पहले से मौजूद है जिसे पीएम मित्र पार्क और मजबूत करेगा। पीएम मित्रा पार्क से विशेष रूप से आदिवासी अंचल के लिए लाभकारी होगा साथ ही धार और आसपास के जिलों में रहने वाले लाखों लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा।  यह परियोजना स्थानीय युवाओं को कौशल विकास और रोजगार के अवसर प्रदान करेगी जिससे क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या में कमी आएगी। इस पार्क में कपास से धागा, धागे से कपड़े और तैयार कपड़े की बिक्री और निर्यात तक का काम एक ही स्थान से किया जा सकेगा यानी यहां कटाई, बुनाई, प्रोसेसिंग, रंगाई, छपाई और परिधानों के निर्माण जैसे सभी काम होंगे।  इस सौगात को मध्यप्रदेश के कपड़ा उद्योग के नए युग की शुरूआत माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अपने जन्मदिन के अवसर पर मध्यप्रदेश पधार रहे हैं।  प्रदेश में स्थापित होने जा रहे पीएम मित्रा पार्क से टेक्सटाइल और गारमेंट सेक्टर को नई ऊंचाइयां मिलेंगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्य प्रदेश में निवेश केवल व्यावसायिक विस्तार नहीं, बल्कि सतत विकास और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में भागीदारी है। यह पखवाड़ा प्रधानमंत्री के स्वस्थ समाज, सशक्त राष्ट्र के संकल्प को साकार करने का महत्वपूर्ण कदम होगा। प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया और विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने में प्रदेश न केवल  हर संभव योगदान देगा बल्कि  विकसित भारत 2047 के मिशन में भी हमारे प्रदेश की  महत्वपूर्ण भूमिका होगी। डॉ.मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश न केवल कपास का उत्पादक बनेगा बल्कि वैश्विक टेक्सटाइल चेन का अभिन्न अंग भी आने वाले दिनों में बनेगा। किसानों की समृद्धि, रोजगार सृजन और आर्थिक विकास देश के ह्रदय प्रदेश मध्यप्रदेश को  कॉटन कैपिटल बनने की दिशा में भी अग्रसर करेगी। यह केवल एक आर्थिक बदलाव नहीं, बल्कि मोहन के बनते संवरते  मध्यप्रदेश की नई पहचान है।

Monday, 1 September 2025

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी: भारतीय ज्ञान परंपरा, विरासत और विज्ञान का संगम


मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विरासत को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आज भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास समत्व में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का अनावरण और इसके मोबाइल ऐप का लोकार्पण किया। यह घड़ी भारतीय काल गणना की प्राचीन और विश्वसनीय पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर देश और दुनिया को एक अनूठा उपहार प्रदान करती है।यह आयोजन न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित होगा।


विक्रमादित्य वैदिक घड़ी दुनिया की पहली ऐसी घड़ी है जो भारतीय काल गणना प्रणाली पर आधारित है। यह घड़ी पारंपरिक 24 घंटे के समय को 30 मुहूर्तों में विभाजित करती है जो प्राचीन भारतीय पंचांग के सिद्धांतों पर आधारित है। यह न केवल समय, बल्कि तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मास, व्रत, और त्योहारों की जानकारी भी प्रदान करती है। इसके मोबाइल ऐप में 3179 विक्रम संवत पूर्व (श्रीकृष्ण के जन्म) से लेकर 7000 वर्षों से अधिक के पंचांग की दुर्लभ जानकारियां समाहित हैं। यह ऐप 189 से अधिक वैश्विक भाषाओं में उपलब्ध है जिसमें दैनिक सूर्योदय और सूर्यास्त की गणना और इसी आधार पर हर दिन के 30 मुहूर्तों का सटीक विवरण शामिल है जिससे यह भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर ले जाने में सक्षम है।इस घड़ी की एक विशेषता यह है कि प्रचलित समय में वैदिक समय (30 घंटे), वर्तमान मुहूर्त स्थान यह भारतीय मानक समय (IST) और ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) के साथ-साथ मौसम की जानकारी, जैसे तापमान, हवा की गति, आर्द्रता भी प्रदर्शित करती है। इसके अतिरिक्त यह धार्मिक कार्यों और साधना के लिए मुहूर्तों की जानकारी और अलार्म की सुविधा प्रदान करती है।

यह घड़ी भारतीय काल गणना के केंद्र उज्जैन नगरी से जुड़ी हुई है जो प्राचीन काल में समय गणना का केंद्र रहा और कर्क रेखा पर स्थित होने के कारण आज भी समस्त खगोलीय गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण है।विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के मोबाइल ऐप में 3179 विक्रम पूर्व (श्रीकृष्ण के जन्म), महाभारतकाल से लेकर 7000 से अधिक वर्षों के पंचांग, तिथि, नक्षत्र, योग, करण, वार, मास, व्रत एवं त्यौहारों की दुर्लभ जानकारियां समाहित की गई हैं।

वैदिक घडी का लोकार्पण समारोह का आयोजन आज भोपाल में अत्यंत उत्साह के साथ किया गया। इस अवसर पर सुबह शौर्य स्मारक पर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के युवा और विद्यार्थी एकत्रित हुए। वहां से "भारत का समय – पृथ्वी का समय" थीम पर आधारित एक बाइक और बस रैली शुरू हुई, जो श्यामला हिल्स थाने तक गई। इसके बाद रैली पैदल मार्च में बदलकर मुख्यमंत्री निवास समत्व के मुख्य द्वार तक पहुंची। इस आयोजन में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने युवाओं के साथ संवाद कार्यक्रम में भाग लिया जिसमें "विक्रमादित्य वैदिक घड़ी: भारत के समय की पुनर्स्थापना" विषय पर गहनचर्चा हुई।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का प्रथम लोकार्पण 29 फरवरी 2024 को उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। उज्जैन में यह उपयुक्त स्थान पर स्थापित हो चुकी है । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस परियोजना की नींव 2022 में उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए रखी थी और इसके लिए विधायक निधि से 1.68 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इस घड़ी का निर्माण आईआईटी दिल्ली के छात्रों और ऐप डेवलपर आरोह श्रीवास्तव ने किया है। यह घड़ी इंटरनेट और जीपीएस से जुड़ी हुई है और इसमें टेलीस्कोप भी स्थापित किया गया है जो खगोलीय घटनाओं को देखने में सहायक है।

भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। यहाँ की ज्ञान परंपरा , संस्कृति का प्रत्येक पहलू प्रकृति और विज्ञान का ऐसा विलक्षण उदाहरण है जो विश्व कल्याण और सभी प्राणियों में सद्भाव का पोषक है। इन्हीं धरोहरों के आधार पर निर्मित 'विक्रमादित्य वैदिक घड़ी' भारतीय परम्परा का गौरवपूर्ण प्रतीक है। इस घड़ी के माध्यम से भारत के गौरवपूर्ण समय को पुनर्स्थापित करने का प्रयास मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने किया है निश्चित ही उनका यह प्रयास विरासत और विकास, प्रकृति और तकनीक का संतुलन होगा। यह स्वदेशी जागरण की महत्वपूर्ण कोशिश है जो भारत को विश्व मंच पर मजबूती प्रदान करेगी।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारतीय संस्कृति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जीवंत प्रतीक है। यह न केवल भारत की प्राचीन समय गणना पद्धति को नया जीवन प्रदान करती है, बल्कि इसे आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर वैश्विक स्तर पर एक नया आयाम प्रदान करती है। यह घड़ी भारत के सभी प्रमुख मंदिरों से भी जुड़ी हुई है जिससे यह धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अवसर पर कहा कि यह पहल प्रदेश और देश के के लिए गर्व का विषय है। यह घड़ी भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर मजबूती प्रदान करेगी और स्वदेशी जागरण की एक महत्वपूर्ण कोशिश है। यह भारत की विरासत और विकास के बीच संतुलन का प्रतीक है। विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण मध्यप्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह घड़ी भारतीय काल गणना की प्राचीन पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर विश्व को भारत की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक धरोहर से परिचित कराती है।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी न केवल समय की गणना का साधन है बल्कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास है। मध्यप्रदेश के विजनरी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की यह पहल आने वाले दिनों में निश्चित ही भारत को विश्व मंच पर एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

Friday, 22 August 2025

मोहन के नेतृत्व में अब देश की 'माइनिंग कैपिटल' बनेगा एमपी


देश का हृदय स्थल एमपी अपनी समृद्ध खनिज संपदा और निवेश-अनुकूल नीतियों के चलते  अब खनन क्षेत्र में एक अग्रणी राज्य के रूप में उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने खनिज नीलामी और खनन क्षेत्र में सतत विकास के क्षेत्र में  निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है। एमपी माइनिंग क्षेत्र में  न केवल आर्थिक प्रगति का केंद्र बन रहा है, बल्कि देश के औद्योगिक विकास और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।


मध्यप्रदेश ने खनिज ब्लॉकों की नीलामी में देश में शीर्ष स्थान हासिल किया है। पारदर्शी नीलामी, पर्यावरण-अनुकूल खनन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जैसे सुधारों से निवेशकों का विश्वास मध्यप्रदेश की ओर तेजी से बढ़ा है। 17-18 अक्टूबर 2024 को भोपाल में आयोजित माइनिंग कॉन्क्लेव में 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव मध्यप्रदेश को प्राप्त हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य ने 29 खनिज ब्लॉकों की सफल नीलामी की जिसके लिए भारत सरकार ने वर्ष 2022 और 2025 में खनन मंत्रियों के सम्मेलन में मध्यप्रदेश को प्रथम और द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया। 
यही नहीं हाल ही में मध्यप्रदेश ने क्रिटिकल मिनरल्स की नीलामी शुरू कर केंद्र सरकार की नीति को लागू करने वाला पहला राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया। अब तक मध्यप्रदेश ने कुल 103 खनिज ब्लॉकों की नीलामी की है जिससे भविष्य में 1.68 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त होने की संभावना है। इसी तरह से सिंगरौली और कटनी जिलों में कुल पाँच स्वर्ण ब्लॉकों की नीलामी की जा चुकी है जिनमें 7.87 मिलियन टन अयस्क भंडार मौजूद है। जबलपुर के सिहोरा और कटनी के स्लीमनाबाद क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर सोने की उपलब्धता है। 

मध्यप्रदेश में  खनिज संसाधनों का बेशुमार खजाना मौजूद है। यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ हीरे का उत्पादन होता है। विशेष रूप से पन्ना जिले की मझगवां खदान से प्रतिवर्ष एक लाख कैरेट हीरे का उत्पादन होता है। इसके अलावा छतरपुर के बंदर हीरा ब्लॉक में 34.2 मिलियन कैरेट हीरे का अनुमानित भंडार मौजूद है। मध्यप्रदेश तांबे के उत्पादन में भी अग्रणी है जहाँ मलाजखंड तांबा खदान को देश  की सबसे बड़ी तांबा खदान होने का गौरव प्राप्त है और देश के कुल तांबा भंडार का 70% हिस्सा यहीं से आता है। मध्यप्रदेश अनेक  बेशकीमती खनिजों का प्रचुर भंडार है।  देश के कुल उत्पादन का 30 फीसदी मैंगनीज अकेला मध्यप्रदेश में पाया जाता है। मध्यप्रदेश कॉपर, मैंगनीज और हीरा प्रोडक्शन में पहले स्थान पर है। लाइमस्टोन के उत्पादन में मध्यप्रदेश तीसरे तो कोयला उत्पादन में  प्रदेश चौथे स्थान पर है। रॉक फॉस्फेट के भंडार मध्य प्रदेश के कई जिलों में प्रचुर मात्रा में आज मौजूद हैं। बुंदेलखंड में हीरे से लेकर सोना तो महाकौशल में आयरन से लेकर मैंगनीज तक के भंडार हैं। सतना, रीवा और सीधी में लाइमस्टोन, बॉक्साइट, ग्रेफाइट, गोल्ड और ग्रेनाइट का विशाल भंडार है। सिंगरौली में कोयला, गोल्ड और आयरन का भंडार है। पन्ना में सबसे ज्यादा हीरे की खनन होती है। छतरपुर के बक्सवाहा जंगल में भी हीरे की प्रचुरता  है। जहाँ शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में कोयला, कोल बेड, मिथेन और बॉक्साइट का विशाल भंडार है वहीँ  सागर, पन्ना में डायमंड, रॉक फॉस्फेट, आयरन, ग्रेनाइट, लाइस्टोन, डायस्पोर और पाइरोफिलाइट का भंडार मौजूद  है। इसी तरह जबलपुर और कटनी में बॉक्साइट, डोलोमाइट, आयरन, लाइमस्टोन, मैंगनीज, गोल्ड और मार्बल का भंडार है। नीमच और धार अपने  लाइमस्टोन  के भण्डार के लिए पूरे देश में जाना जाता है। महाराष्ट्र की सीमा से सटे बैतूल में कोयला, ग्रेफाइट, ग्रेनाइट, लीड और जिंक का भंडार है वहीँ छिंदवाड़ा में कोयला, मैंगनीज और डोलोमाइट का विशाल भंडार है। बालाघाट कॉपर, मैंगनीज, डोलोमाइट, लाइमस्टोन और बॉक्साइट की खान है। मंडला और डिंडोरी में डोलोमाइट और बॉक्साइट तो ग्वालियर और शिवपुरी में आयरन, फ्लैगस्टोन और क्वार्ट्ज की खान  है। इसी तरह  झाबुआ और अलीराजपुर में रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, लाइमस्टोन, मैंगनीज और ग्रेफाइट का भंडार है। 

 मैंगनीज, रॉक फॉस्फेट, चूना पत्थर और कोयला जैसे खनिजों में भी मध्यप्रदेश देश में शीर्ष स्थानों पर है। हाल ही में जबलपुर और कटनी जिलों में सोने की खोज की गई है, वहीं पन्ना और छतरपुर में हीरे के विशाल भंडार प्रमाणित हुए हैं। खनिज निधि का उपयोग मध्यप्रदेश में सामाजिक विकास के लिए भी किया जा रहा है। जिला खनिज विभाग के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, महिला-बाल कल्याण, स्वच्छता और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में 16,452 परियोजनाएँ स्वीकृत की गई हैं जिनमें से 7,583 पूरी हो चुकी हैं। इन परियोजनाओं ने स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मध्यप्रदेश में अलग-अलग खनिज पदार्थों के खनन और प्रोडक्शन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। कटनी माइनिंग कॉन्क्लेव के जरिए मोहन सरकार निवेश को लेकर अपना बड़ा रोडमैप बना रही है जिससे अनेक कंपनियां भी  सरकार की नीतियों  से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश में निवेश करने में अपनी रूचि दिखा रही हैं।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने खनन क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा दिया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य ने खनिज राजस्व में 23% की वृद्धि दर्ज की, जो पहली बार 10,000 करोड़ रुपये को पार कर गया, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 4,958 करोड़ रुपये था। 17-18 अक्टूबर 2024 को भोपाल में आयोजित माइनिंग कॉन्क्लेव में 20,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित होने की संभावना है। पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया, पर्यावरण-अनुकूल खनन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है।मध्यप्रदेश सरकार ने खनन क्षेत्र को औद्योगिक विकास से जोड़ने  का मास्टर प्लान बनाया है। 23 अगस्त 2025 को कटनी में आयोजित होने वाला खनन सम्मेलन औद्योगिक विकास पर केंद्रित होगा जहाँ खनिज-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने पर चर्चा होगी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2025 में भी खनन क्षेत्र को प्रमुखता दी गई जिसमें अगले पाँच वर्षों में खनिज राजस्व को 11,000 करोड़ से बढ़ाकर 55,000 करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन  यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश खनन और खनिज संसाधनों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभरा है। खनिजों की प्रचुरता और राज्य सरकार की निवेश अनुकूल नीतियों के कारण मध्यप्रदेश देश की औद्योगिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खनन क्षेत्र में प्रदेश की उपलब्धियों से राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। साथ ही देश के औद्योगिक विकास और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में भी प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित हो सकेगा। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को भारत की 'माइनिंग कैपिटल' बनाना है। इसके लिए सरकार निवेशकों को आकर्षित करने, पारदर्शी और पर्यावरण-अनुकूल खनन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने और आधुनिक तकनीकों और नवाचारों का उपयोग करने पर ध्यान दे रही है। मध्यप्रदेश की समृद्ध खनिज संपदा, नीतिगत सुधार और निवेश-अनुकूल वातावरण इसे देश के औद्योगिक और आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाने की दिशा में अग्रसर कर रहे हैं। अपनी प्रचुर खनिज संपदा, औद्योगिक नीतियों और रोजगार सृजन की भूमिका के साथ मध्यप्रदेश देश के आर्थिक परिदृश्य में एक नया अध्याय लिख रहा है। मध्यप्रदेश अपने नवाचारों और नीतियों के माध्यम से  न केवल खनन  क्षेत्र में नए आयामों को स्थापित कर रहा है बल्कि यह देश में एक मॉडल राज्य के रूप में भी उभर रहा है। मोहन सरकार की औद्योगिक  नीतियों में श्रमिकों और उद्योगों दोनों के हितों का समान ध्यान रखा जा रहा है। मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाएं तेजी से  बढ़ रही हैं और देश-विदेश के उद्योगपति अब एमपी को एक प्रमुख निवेश गंतव्य स्थल के रूप में देख रहे हैं।
 

Thursday, 21 August 2025

कटनी में माइनिंग कॉन्क्लेव , अब ​माइनिंग से चमकेगी मोहन के एमपी की किस्मत


देश का हृदयस्थल कहा जाने वाले मध्यप्रदेश डॉ. मोहन यादव के विजनरी नेतृत्व में हाल के वर्षों में औद्योगिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में एक नया गढ़ बनकर उभर रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपनी दूरदर्शी नीतियों के माध्यम से मध्यप्रदेश में निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। उनकी इन्वेस्टर्स फ्रैंडली नीतियों और ग्लोबल स्तर पर मध्यप्रदेश की ब्रांडिंग करने की कारगर रणनीति ने राज्य को निवेश का एक प्रमुख केंद्र बना दिया है। डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने न केवल निवेश के मोर्चे पर अनेक सफलताएं हासिल की है, बल्कि आर्थिक विकास और औद्योगिक नवाचार में भी नई ऊँचाइयाँ छुई हैं।

 एमपी में  कटनी से होगी माइनिंग क्रांति 

मध्यप्रदेश का कटनी जिला अपनी समृद्ध खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। 23 अगस्त  को कटनी एक महत्वपूर्ण माइनिंग कॉन्क्लेव के आयोजन का साक्षी बनने जा रहा है। यह आयोजन न केवल कटनी की खनिज संपदा को वैश्विक पहचान दिलाने का प्रयास है, बल्कि खनन क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने और स्थानीय रोजगार  की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। इस कॉन्क्लेव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, केंद्रीय और राज्य मंत्रियों के साथ-साथ देशभर के नामचीन उद्योगपतियों और निवेशकों की भागीदारी होगी।

मध्यप्रदेश में रॉक फॉस्फेट से लेकर गोल्ड हीरे से लेकर कोयले  तक का प्रचुर भंडार

मध्यप्रदेश अनेक  बेशकीमती खनिजों का प्रचुर भंडार है।  देश के कुल उत्पादन का 30 फीसदी मैंगनीज अकेला मध्यप्रदेश में पाया जाता है। मध्यप्रदेश कॉपर, मैंगनीज और हीरा प्रोडक्शन में पहले स्थान पर है।लाइमस्टोन के उत्पादन में मध्यप्रदेश तीसरे तो कोयला उत्पादन में  प्रदेश चौथे स्थान पर है। रॉक फॉस्फेट के भंडार मध्य प्रदेश के कई जिलों में प्रचुर मात्रा में आज मौजूद हैं। बुंदेलखंड में हीरे से लेकर सोना तो महाकौशल में आयरन से लेकर मैंगनीज तक के भंडार हैं।सतना, रीवा और सीधी में लाइमस्टोन, बॉक्साइट, ग्रेफाइट, गोल्ड और ग्रेनाइट का भंडार है। सिंगरौली में कोयला, गोल्ड और आयरन का भंडार है। पन्ना में सबसे ज्यादा हीरे की खनन होती है।  छतरपुर के बक्सवाहा जंगल में भी हीरे का बड़ा भंडार है। जहाँ शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में कोयला, कोल बेड, मिथेन और बॉक्साइट का विशाल भंडार है वहीँ  सागर, छतरपुर और पन्ना में डायमंड, रॉक फॉस्फेट, आयरन, ग्रेनाइट, लाइस्टोन, डायस्पोर और पाइरोफिलाइट का भंडार मौजूद  है। इसी तरह जबलपुर और कटनी में बॉक्साइट, डोलोमाइट, आयरन, लाइमस्टोन, मैंगनीज, गोल्ड और मार्बल का भंडार है। नीमच और धार अपने  लाइमस्टोन  के भण्डार के लिए पूरे देश में जाना जाता है।  महाराष्ट्र की सीमा से सटे बैतूल में कोयला, ग्रेफाइट, ग्रेनाइट, लीड और जिंक का भंडार है वहीँ छिंदवाड़ा में कोयला, मैंगनीज और डोलोमाइट का विशाल भंडार है। बालाघाट कॉपर, मैंगनीज, डोलोमाइट, लाइमस्टोन और बॉक्साइट की खान है। मंडला और डिंडोरी में डोलोमाइट और बॉक्साइट तो ग्वालियर और शिवपुरी में आयरन, फ्लैगस्टोन और क्वार्ट्ज की खान  है। इसी तरह  झाबुआ और अलीराजपुर में रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, लाइमस्टोन, मैंगनीज और ग्रेफाइट का भंडार है। 

माइनिंग सेक्टर में अपार संभावनाओं के लिए मोहन सरकार पिछले वर्ष  राजधानी भोपाल में  माइनिंग कॉन्क्लेव का सफल  आयोजन कर चुकी है जिसके माध्यम से  माइनिंग सेक्टर में निवेशकों को भी लुभाने की पूरी कोशिश की गई जिसमें  देश भर के माइनिंग के जुड़ी कंपनियों के दिग्गज प्रतिनिधियों , विभिन्न राज्यों के अधिकारियों ने शिरकत की औरअनेक  राउंड टेबल बैठकें की। निवेशकों को लुभाने के लिए मोहन सरकार नई माइनिंग नीति भी लाई है। सरकार की कोशिश है कि मध्यप्रदेश के अलग-अलग क्षेत्र में जो खनिज भंडार हैं, उसके लिए निवेशक आगे आएं। इसके लिए सरकार निवेशकों को प्रोत्साहित भी कर रही है।  

अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज देगा कटनी 


कटनी में आयोजित होने वाला माइनिंग कॉन्क्लेव मोहन सरकार का एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक है  जो कटनी की खनिज संपदा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा।यह कॉन्क्लेव  कटनी को एमपी के खनिज के एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति और देशभर के उद्योगपतियों की भागीदारी इस आयोजन को ख़ास बनाएगी । 

कटनी में होने वाले इस कॉन्क्लेव की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं।  अब तक अनेक उद्योगपतियों और निवेशकों ने इस आयोजन के लिए अपना  पंजीयन कराया है।  कटनी कॉन्क्लेव के सफल आयोजन के बाद  मोहन सरकार प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह के आयोजन करेगी जो राज्य में स्थानीय स्तर पर रोजगार के बड़े अवसर भी प्रदान करेगा। निवेश के नए अवसरों से न केवल स्थानीय उद्योगों को बल मिलेगा, बल्कि रोजगार सृजन के माध्यम से क्षेत्र के युवाओं को भी लाभ होगा।

मोहन सरकार ने बनाया माइनिंग का बड़ा रोडमैप 

मध्यप्रदेश में अलग-अलग खनिज पदार्थों के खनन और प्रोडक्शन के क्षेत्र में पार संभावनाएं हैं। माइनिंग कॉन्क्लेव के जरिए सरकार निवेशकों को अपना रोडमैप बता रही है जिससे अनेक कंपनियां भी मोहन सरकार की नीतियों  से प्रभावित होकर मध्यप्रदेश में निवेश करने में अपनी रूचि दिखा रही हैं।मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने कहा कि सरकार समाज के सभी वर्गो की बेहतरी के लिए कदम से कदम मिलाकर चल रही है। मध्यप्रदेश में औद्योागिक निवेश के नजरिए से सभी प्रकार की अनुकूलता है। राज्य में निवेश की अनेक संभावनाएं हैं। अपने रणनीतिक प्रयासों से मोहन युग में एमपी औद्योगिक विकास और निवेश की नई ऊंचाइयों को छूने की  दिशा में अग्रसर है। प्रदेश सरकार की औद्योगिक  नीतियों में श्रमिकों और उद्योगों दोनों के हितों का समान ध्यान रखा जा रहा है। मध्यप्रदेश में निवेश की संभावनाएं तेजी से  बढ़ रही हैं और देश-विदेश के उद्योगपति अब एमपी को एक प्रमुख निवेश गंतव्य स्थल के रूप में देख रहे हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2025 के सफल आयोजन और मुख्यमंत्री डॉ. यादव के निवेश को लेकर की गई ताबड़तोड़  यात्राओं के बाद से मध्यप्रदेश को लेकर उद्योग जगत में खासा उत्साह देखा जा रहा है। देश और दुनिया के प्रमुख उद्योगपतियों ने मध्यप्रदेश में निवेश को लेकर अपनी विशेष रूचि दिखाई है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का विजन मध्यप्रदेश को 2047 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6% योगदान देने वाला राज्य बनाना है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2047-48 तक 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। डॉ. मोहन यादव का कुशल  नेतृत्व और दूरदर्शी विजन मध्यप्रदेश को औद्योगिक क्षेत्र में ग्लोबल पहचान दिलाने की दिशा में अग्रसर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश ने बेहद कम समय मे निवेश और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा है। यह न केवल मध्यप्रदेश की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है बल्कि भारत के विकास में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस निवेश ने मध्यप्रदेश को निवेशकों के लिए न केवल एक आदर्श डेस्टिनेशन बनाया है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत बनाने की दिशा में यह एक सधा हुआ कदम है।

Saturday, 16 August 2025

श्रीकृष्ण की नीतियों से प्रेरित 'मोहन', कृष्णमय हुआ मध्यप्रदेश



देश का हृदयप्रदेश मध्यप्रदेश अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जाना जाता है। अब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में श्रीकृष्ण का देश और दुनिया से सीधा साक्षात्कार हो रहा है। राम वन गमन पथ की तरह अब प्रदेश सरकार श्री कृष्ण के मार्ग की खोज में जुटी हुई है और उनकी नीतियों पर चलते हुए कदमताल कर रही है।  मध्यप्रदेश में मालवा पावन भूमि में आज भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं जीवंत हैं। बाबा महाकाल नगरी उज्जैन में वह 12 वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्त करने आए जहाँ के सांदीपनि आश्रम और गुरुकुल से उनका बहुत पुराना नाता रहा है। इसी तरह जानापाव में परशुराम द्वारा उन्हें सुदर्शन चक्र दिया गया और धार के अमझेरा में रुक्मणि से भी उनका सीधा नाता रहा है। श्रीकृष्ण का जन्म भले ही मथुरा में हुआ लेकिन उनका तन और मन मध्यप्रदेश में ही रमता था। मध्यप्रदेश सरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में उनकी इस आध्यात्मिक धरोहर को सहेजने के लिए ‘श्रीकृष्ण पाथेय’ के रूप में एक अनूठा प्रयास कर रही है। यह परियोजना न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक अभ्युदय का प्रतीक है, बल्कि मध्यप्रदेश को आध्यात्मिक पर्यटन के केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में सरकार का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है।

‘श्रीकृष्ण पाथेय’ मध्यप्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य श्रीकृष्ण से जुड़े स्थानों को तीर्थ स्थलों के रूप में विकसित करना है। इस परियोजना के तहत उन सभी स्थानों को संरक्षित और विकसित किया जा रहा है जहां श्रीकृष्ण की लीलाएं हुई या जिनका उनके जीवन से कोई न कोई संबंध रहा है।मध्यप्रदेश सरकार ने बीते वर्ष “श्रीकृष्ण पाथेय” योजना की शुरुआत की है जिसके तहत श्रीकृष्ण से जुड़े अनेक स्थानों जैसे उज्जैन, जानापाव और अमझेरा को बड़े तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इस योजना के लिए 750 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का मानना है कि दुनिया भर में फैले हुए श्रीकृष्ण के भक्तों और पर्यटकों का श्रीकृष्ण के जीवन और शिक्षाओं से सीधा साक्षात्कार हो सके जिसको साकार करने के लिए मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल ने ‘श्रीकृष्ण पाथेय न्यास’ के गठन को मंजूरी दी है जिसमें 28 सदस्यों के साथ 23 पदेन और 5 विशेषज्ञ गैर-आधिकारिक न्यासी होंगे। यह न्यास श्रीकृष्ण से जुड़े मंदिरों के प्रबंधन, संदीपनी गुरुकुल की स्थापना और सांस्कृतिक-साहित्यिक संरक्षण जैसे कार्यों को संचालित करेगा। मोहन सरकार श्री कृष्ण पाथेय के लिए गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्य सरकारों की भी सलाह ले रही है जिससे इस ड्रीम प्रोजेक्ट में में प्रदेश के बाहर के श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों को शामिल हो सकें। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ साहित्य के अध्ययन आदि के माध्यम से पाथेय का नक्शा बनाएंगे और ऐसे सभी स्थानों को जहां श्रीकृष्ण के कदम पड़े थे उन्हें बड़े प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया जाना है। नवंबर 2024 में राज्य कैबिनेट ने मध्यप्रदेश पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1951 के तहत 'श्रीकृष्ण पाथेय ट्रस्ट ’के गठन को मंजूरी दे चुकी है। यह ट्रस्ट भगवान कृष्ण के मंदिरों और संरचनाओं का प्रबंधन करेगा।मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह प्रयास केवल एक प्रशासनिक परियोजना नहीं, बल्कि उनकी सनातनी भावना और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी आस्था का परिणाम है। उनका मानना है कि श्रीकृष्ण का जीवन और उनके दर्शन मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। श्रीकृष्ण पाथेय परियोजना का प्रभाव न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों तक सीमित है बल्कि यह मध्यप्रदेश के समग्र विकास में भी योगदान देगी। यह न केवल प्रदेश की स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा करने के साथ ही मोहन का यह ड्रीम प्रोजेक्ट भारतीय सनातन संस्कृति और अध्यात्म को वैश्विक मंच पर ले जाने में भी सहायक होगा।

मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने श्रीकृष्ण की शिक्षाओं और उनके जीवन से जुड़े स्थानों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मोहन सरकार ने पशुपालन एवं डेयरी विभाग का नाम बदलकर पशुपालन, डेयरी और गौपालन विभाग करने की घोषणा की है। यह कदम गौ-माता के प्रति सम्मान और गौपालन को प्रोत्साहन देने के लिए उठाया गया है। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ समझौता कर दुग्ध उत्पादन और संकलन को व्यवस्थित किया जा रहा है जिसमें दुग्ध संकलन समितियों की संख्या को 9,000 से बढ़ाकर 26,000 करने का संकल्प लिया गया है। दूध से संबंधित फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने की योजना है जिससे दुग्ध उत्पादों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। गौ वंश को स्वावलंबी बनाने के लिए सरकार ने 30 स्थानों पर 5,000 से 25,000 गोवंश क्षमता वाली हाईटेक गौशालाएं स्थापित करने की योजना बनाई है। इन गौशालाओं में जैविक खाद, सीएनजी गैस, और सौर ऊर्जा का उत्पादन होगा।श्रीकृष्ण की गौ-प्रेम की भावना से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गौपालन और डेयरी विकास को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं भी प्रदेश में शुरू की हैं। मध्यप्रदेश में गौशालाओं के लिए प्रति गाय दैनिक खर्च को 20 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये किया गया है। इसी तरह से दूध बेचने वालों को प्रति लीटर 5 रुपये का बोनस देने की घोषणा की गई है। इसी तरह मुख्यमंत्री वृंदावन गांव योजना भी शुरू की गई है जिसका उद्देश्य पशुधन के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि लाना है। डॉ. भीमराव अंबेडकर दुग्ध उत्पादन योजन के तहत डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए 42 लाख रुपये तक का बैंक ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। गौपालन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सरकार प्राकृतिक और जैविक खेती पर भी जोर दे रही है।इसी तरह से  गाय के गोबर से बनी प्राकृतिक खाद से उत्पादित अनाज को सरकार अधिक कीमत पर खरीदेगी। इंदौर, देवास, रीवा जैसे जिलों में गौशालाओं के माध्यम से सीएनजी गैस का उत्पादन शुरू हो चुका है। प्रत्येक ब्लॉक में एक वृंदावन ग्राम की स्थापना की जा रही है जहां गौपालन, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्ष और सौर ऊर्जा जैसी अनेक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। गौवंश तस्करी को रोकने के लिए मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024 लागू किया गया है जिसमें तस्करों को 7 साल की सजा का प्रावधान है। डॉ.मोहन यादव ने श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को शिक्षा के क्षेत्र में भी शामिल करने पर जोर दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के स्कूलों में श्रीकृष्ण की जीवनी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की अभिनव पहल की है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को लागू करते हुए गौपालन और डेयरी विकास से युवाओं को स्वरोजगार और उद्यमिता की दिशा में प्रेरित किया है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने श्रीकृष्ण को न केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व के रूप में, बल्कि एक निष्काम कर्मयोगी, कुशल रणनीतिकार और समाज सुधारक के रूप में भी देखा है। उनके अनुसार श्रीकृष्ण का जीवन हर युग में प्रासंगिक है और आज हर किसी को उनके जीवन दर्शन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों में गीता भवन का निर्माण उनकी इस भक्ति को सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर संरक्षित करने का प्रयास दर्शाता है। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण का संदेश जो पूरी दुनिया को मिला आज भी वह उतना ही प्रासंगिक है और मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रयासों के माध्यम से यह संदेश अब गीता भवनों के माध्यम से पूरे देश में नई ऊँचाइयों को छुएगा। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार 2875 करोड़ रुपए की लागत से 413 नगरीय निकायों में गीता भवन बनाने जा रही है जो अगले दो वर्षों में बनकर तैयार हो जाएगा। 16 नगर निगमों में 1000 से लेकर 1500 की बैठक क्षमता वाले गीता भवन बनाए जाएंगे। इसी तरह से 99 नगर पालिकाओं में 500 बैठक क्षमता वाले गीता भवन बना जाएंगे और 298 नगर परिषदों में ढाई सौ बैठक क्षमता वाले गीता भवन बनाए जाएंगे।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जन्माष्टमी के सांस्कृतिक उत्सव को एक अनूठा स्वरूप प्रदान किया जिसमें बीते वर्ष की तरह इस बार भी शहरों से लेकर गाँवों तक अनूठा उत्साह देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में  जन्माष्टमी धूमधाम के साथ मनाई जाएगी और गीता भवनों की स्थापना के लिए भूमिपूजन होंगे।मंदिरों के अनुपम श्रृंगार के लिए 1.50 लाख रुपए के तीन, 1 लाख रुपए के पांच और 51 हजार रुपए के सात पुरस्कार दिए जाएंगे। श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में 16 से 18 अगस्त तक तीन दिवसीय कार्यक्रम होंगे। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव रायसेन जिले के महलपुर पाठा के दौरे पर भी जा रहे हैं जो तकरीबन 700 बरस पुराना है।  ऐसा माना  जाता है  श्रीकृष्ण महलपुर पाठा से जामगढ़ की गुफा में गए थे और मणि यहां लाए थे।   जन्माष्टमी के सांस्कृतिक उत्सव को भव्य तरीके से पूरे प्रदेश में कराने का मकसद युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जड़ों से जोड़ना और स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना है।  मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि इस वर्ष भी जन्माष्टमी के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों में सभी वर्गों की सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है। जन्माष्टमी पर प्रदेश के सभी  मंदिरों को जहाँ सजाया गया है वहीँ भजन संध्या, दही-हांडी उत्सव ने आम जनमानस में हमारी सनातन संस्कृति के धार्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति रुचि जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जन्माष्टमी के उत्सव ने न केवल श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं को जीवंत किया है बल्कि मध्यप्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी देश और दुनिया में प्रस्तुत किया है। श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के पावन अवसर पर मोहन सरकार ''श्रीकृष्‍ण पर्व'' एवं लीला पुरुषोत्‍तम का प्राकट्योत्‍सव का आयोजन करने जा रही है। सरकार ने इस उत्सव के लिए प्रदेश के 3 हजार से अधिक मंदिरों को चुना है जहां पर धार्मिक अनुष्ठान, श्रृंगार प्रतियोगिताएं, मटकी-फोड़, रासलीला और भजन संध्या जैसे कार्यक्रम होंगे। इन आयोजनों के साथ सम्‍पूर्ण प्रदेश श्रीकृष्‍णमय हो जायेगा और सांस्‍कृतिक रंगों में रंगा नजर आयेगा। 

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व और श्रीकृष्ण की नीतियों के माध्यम से मध्यप्रदेश लगातार कृष्णमय हो रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह प्रयास श्रीकृष्ण की विरासत के माध्यम से मध्यप्रदेश को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का सशक्त केन्द्र बनाने का एक मजबूत संकल्प भी है। श्रीकृष्ण पाथेय प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश की गौरवशाली विरासत को सहेजने और इसे विश्व पटल पर स्थापित करने की दिशा में प्रदेश सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘कृष्णमय मध्यप्रदेश’ निश्चित रूप से प्रदेश को एक नई पहचान देगा जहां आध्यात्मिकता, संस्कृति और विकास का अनूठा मनमोहनी संगम होगा।

Friday, 15 August 2025

तिरंगा : भारतीयता का जीवंत प्रतीक


किसी भी देश का राष्ट्र ध्वज उसके स्वतंत्र होने का संकेत है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा केवल एक कपड़े या कागज़ का टुकड़ा नहीं है बल्कि यह भारत की आत्मा, इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। इसके तीन रंग केसरिया, सफेद , हरा और  मध्य में अशोक चक्र भारतीयता के विभिन्न आयामों को दर्शाते हैं। तिरंगा न केवल स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को बयां करता है, बल्कि यह भारत की एकता, विविधता और आकांक्षाओं का भी प्रतीक है। तिरंगे ने अपने रंगों से दुनिया में अपनी अद्वितीय छवि बनाई है। राष्ट्रीय ध्वज के लिए हथकरघा खादी (सूती या रेशमी) कपड़ा इस्तेमाल किया जाता है। तिरंगे झंडे में नीले रंग का अशोक चक्र धर्म तथा ईमानदारी के मार्ग पर चलकर देश को उन्नति की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है। 

तिरंगे का केसरिया रंग साहस, बलिदान और त्याग का प्रतीक है। यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की याद दिलाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भारतीयता का यह पहलू हमें निस्वार्थ भाव से देश के लिए समर्पित होने की प्रेरणा देता है। इसी तरह से सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक यह रंग भारत की अहिंसावादी विचारधारा को रेखांकित करता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसा और सत्याग्रह ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि विश्व को शांति का संदेश भी दिया। यह रंग भारतीयता की उस भावना को दर्शाता है जो सहिष्णुता और सामंजस्य में विश्वास रखती है। हरा रंग समृद्धि, उर्वरता और प्रकृति के प्रति भारत की गहरी आस्था को दर्शाता है। भारत की संस्कृति में प्रकृति और पर्यावरण का विशेष स्थान रहा है। यह रंग हमें सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है। मध्य में नीले रंग का अशोक चक्र गतिशीलता और प्रगति का प्रतीक है। यह सम्राट अशोक के धर्म चक्र से प्रेरित है जो न्याय, धर्म और नैतिकता का प्रतीक है। यह चक्र भारतीयता के उस दर्शन को दर्शाता है जो निरंतर प्रगति और नैतिकता के मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है। भारतीयता एक ऐसी अवधारणा है जो भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विविधता को समेटे हुए है। तिरंगा इस भारतीयता का एक जीवंत प्रतीक है।  भारत विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। तिरंगा इस विविधता को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करता है। जैसे तिरंगे के तीन रंग एक साथ मिलकर एक पूर्ण ध्वज बनाते हैं वैसे ही भारत की विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय एक साथ मिलकर भारतीयता का निर्माण करते हैं। यह ध्वज हमें सिखाता है कि भिन्नताओं के बावजूद हम एक हैं। तिरंगा स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है। यह उन असंख्य बलिदानों का प्रतीक है जिन्होंने भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाई। भारतीयता का यह पहलू हमें स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भावना से जोड़ता है। तिरंगा हमें याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता अनमोल है और इसे बनाए रखने के लिए हमें सतत प्रयास करना होगा।

भारतीय इतिहास में 1905 से पहले पूरे भारत की अखंडता को दर्शाने के लिए कोई राष्ट्र ध्वज नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वर्ष 1905 में स्वामी विवेकानंद की शिष्य सिस्टर निवेदिता ने पहली बार पूरे भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की थी। सिस्टर निवेदिता द्वारा बनाए गए ध्वज में कुल 108 ज्योतियाँ बनाई गई थी। यह ध्वज चौकोर आकार का था। ध्वज के दो रंग थे- लाल और पीला। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम और पीला रंग विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बंगाली भाषा में वंदे-मातरम् लिखा गया था और इसके पास वज्र (एक प्रकार का हथियार) और केंद्र में एक सफेद कमल का चित्र भी था। वर्तमान में इस ध्वज को आचार्य भवन संग्रहालय, कोलकाता में संरक्षित रखा गया है। इसके बाद 7 अगस्त 1906 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के पारसी बागान चौक में ध्वज को फहराया गया। कोलकाता ध्वज प्रथम भारतीय अनाधिकारिक ध्वज था। इसकी अभिकल्पना शचिन्द्र प्रसाद बोस ने की थी। झंडे में बराबर चौड़ाई की तीन क्षैतिज पट्टियाँ थीं। शीर्ष धारी नारंगी, केंद्र धारी पीली और निचली पट्टी हरे रंग की थी। शीर्ष पट्टी पर ब्रिटिश-शासित भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते 8 आधे खुले कमल के फूल थे और निचली पट्टी पर बाईं तरफ सूर्य और दाईं तरफ़ एक वर्धमान चाँद की तस्वीर अंकित थी। ध्वज के केंद्र में "वन्दे-मातरम्" का नारा अंकित किया गया था। इसी तरह पहली बार विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज मैडम भीकाजी कामा द्वारा 22 अगस्त 1907 को अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस केस्टटगार्ट में फहराया गया था। इस ध्वज को 'सप्तर्षि झंडे’ के नाम से जाना जाता है। यह ध्वज काफी कुछ वर्ष 1906 के झंडे जैसा ही था लेकिन इसमें सबसे ऊपरी पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्तऋषि के प्रतीक थे। 

भारतीय धरती पर तीसरे प्रकार का तिरंगा होम रूल लीग के दौरान फहराया गया था। “होम रूल आंदोलन” के दौरान कोलकाता में एक कांग्रेस अधिवेशन के दौरान यह ध्वज फहराया गया था। उस समय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का प्रतीक था। इसमें 9 पट्टियाँ थीं, जिसमें 5 लाल रंग और 4 हरे रंग की थी। ध्वज के ऊपरी बाएँ कोने में यूनियन जैक था। शीर्ष दाएँ कोने में अर्धचंद्र और सितारा था। ध्वज के बाकी हिस्सों में सप्तर्षि के स्वरूप में सात सितारों को व्यवस्थित किया गया था।वर्ष 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगले वेंकय्या ने बिजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) में गांधीजी के निर्देशों के अनुसार सफेद,हरे और लाल रंग में पहला "चरखा-झंडा" डिजाइन किया था। इस ध्वज को "स्वराज-झंडे" के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। इस वर्ष तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था।

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा के बाद भारतीय नेताओं को स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का एहसास हुआ। तदनुसार ध्वज को अंतिम रूप देने के लिए एक तदर्थ ध्वज समिति का गठन किया गया। श्रीमती सुरैया बद्र-उद-दीन तैयबजी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन को 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा अनुमोदित और स्वीकार किया गया था। समिति की सिफारिश पर 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। तिरंगे में तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है।  बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के विकास और उर्वरता को दर्शाती है। तिरंगे के केंद्र में सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र है जिसमें 24 आरे (तीलियाँ) होते हैं। यह चक्र एक दिन के 24 घंटों और हमारे देश की निरंतर प्रगति को दर्शाता है। तिरंगे को भारत की महिलाओं की ओर से 14 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के अर्द्ध-रात्रिकालीन अधिवेशन में समर्पित किया गया था।

भारत ने राष्ट्रीय चिन्ह को 26 जनवरी, 1950 को अपनाया था। भारत के तिरंगे झंडे के ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 है। भारत का राज चिन्ह अशोक स्तम्भ के शीर्ष की एक प्रतिकृति है जो सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है।  अशोक स्तम्भ तीन शेरों की आकृति जिसके नीचे एक चौखट के बीच में एक धर्म चक्र है। इस चक्र के दाई ओर एक बैल और बाई ओर एक अश्व है। चौखट के आधार पर ‘सत्यमेव जयते’ शब्द अंकित है। भारत के राजचिन्ह में तीन प्रकारे के छ: जानवर हैं-शेर (चार), बैल (एक), अश्व (एक) भारत का यह चिन्ह भारत की एकता का घोतक है। राष्ट्रीय चिन्ह के दो भाग शीर्ष और आधार हैं। शीर्ष पर शेर साहस और शक्ति का प्रतीक है। राष्ट्रीय चिन्ह के आधार भाग में एक धर्म चक्र है। चक्र के दायीं ओर एक बैल है तथा बायीं ओर एक घोड़ा है जो स्फूर्ति का ताकत व गति का। ‘सत्यमेव जयते’ मुंडकोपनिषद से लिया गया है। ‘सत्यमेव जयते’ का अर्थ सत्य की ही विजय है। भारत के तिरंगे झंडे में चरखे की जगह “चक्र” 1947 को अस्तित्व में आया । 26 जनवरी 2002 से फ्लैग कोड बदल गया है। भारतीयों को कहीं भी किसी भी समय गर्व के साथ झंडा फहराने की आजादी दे दी गयी है। अभी कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19 ए अनुच्छेद के तहत ध्वज फहराने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया था जिसके बाद  देश में भारतीय ध्वज को दिन -रात फहराने की अनुमति दे दी गई है।  

15 अगस्त 1947 आज़ाद भारत के इतिहास का ऐतिहासिक दिन था जब अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाकर भारत में नई  सुबह हुई थी। स्वतंत्रता मिलने के बाद पहली बार देशवासियों ने खुली हवा में साँस ली और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ। आज़ादी के बाद से देश के कई  प्रधानमंत्रियों और सरकारों को देखा है लेकिन इस अमृतकाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के हर-घर तिरंगा जन अभियानों के माध्यम से देश के प्रति जोश, जज्बा और प्रबल हुआ है। किसी भी देशवासी के लिए भारत और भारतीयता का भाव  पहले होना चाहिए। यह मुहिम जाति ,धर्म,संप्रदाय से परे है और देश को इस अमृत काल में एकता के सूत्र में बांध सकती है।  नागरिकों में देश प्रेम की भावना जगाने और संकीर्णता से बाहर निकालने  का यही अमृतकाल है।

आज के समय में तिरंगा केवल एक राष्ट्रीय प्रतीक ही नहीं बल्कि भारत की आकांक्षाओं और सपनों का दर्पण भी है। यह हमें आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल भारत और विकसित भारत के सपने को साकार करने की प्रेरणा देता है। "हर घर तिरंगा" जैसे अभियान भारतीयों को अपने ध्वज के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को और गहरा करने का अवसर प्रदान करते हैं।तिरंगा झंडा भारत और भारतीयता का एक ऐसा प्रतीक है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और भविष्य की ओर प्रेरित करता है। इसके रंग और चक्र हमें साहस, शांति, समृद्धि और प्रगति के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। यह ध्वज हमें याद दिलाता है कि भारतीयता का अर्थ है विविधता में एकता, स्वाभिमान में साहस और शांति में प्रगति। तिरंगे के अक्स में हमारा भारत और हमारी भारतीयता न केवल जीवंत है बल्कि विश्व मंच पर एक प्रेरणा स्रोत के रूप में भी उभर रही है।

देश के प्रत्येक नागरिक को आज़ादी के इस अमृतकाल में इस पावन महायज्ञ में आहूति देकर पुण्य का भागीदार बनना चाहिए। तिरंगे को देखकर हर भारतीय के दिलों में राष्ट्रप्रेम की भावना उमड़ पड़ती है। राष्ट्र ध्वज देखकर उसके प्रति आदर भाव खुद ही जग जाता है। तिरंगा साहस, त्याग, बलिदान के रंगों से सरोबार है। तिरंगे को सम्मान देते हुए आज हर देशवासी का कर्तव्य है इस अमृतकाल में अपने घरों में तिरंगा लहराकर वह इस उत्सव को ऐतिहासिक बनाए। आज़ादी के रणबांकुरों ने अपने शौर्य से जिस प्रकार देश के लिए तन- मन न्यौछावर कर दिया उसी प्रकार तिरंगा झंडा लहराकर हमें भारतबोध का अहसास होगा जो शहीदों को अमृत काल में सच्ची श्रद्धांजलि होगी।